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लाल किले पर मालिकाना हक का नैरेटिव क्यो हुआ ख़ारिज?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
दिल्ली हाईकोर्ट से वह याचिका खारिज कर दी गई जो एक महिला सुल्ताना बेगम के द्वारा लाल किले पर मालिकाना हक को लेकर डाली गई थी।

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सुल्ताना बेगम स्वयं को मुगल आक्रांता शासक बहादुर शाह जफर के पोते की बेगम के रूप में दावा ठोकती हैं। कहानी की बुनावट कुछ इस तरह है कि अंतिम शासक जफर को ब्रिटिश शासक ने रंगून जेल भेज कर लाल किला पर कब्जा कर लिया था। घटना के डेढ़ सौ साल से उपर हो गए। जस्टिस रेखा पल्ली की बेंच पूछता है कि दावाकर्ता इतने साल से कहां थे और याचिका खारिज हो जाता है।

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लेकिन मालिकाना हक का दावा खारिज कैसे होगा? जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने ₹6000 पेंशन का प्रावधान किया था। सुल्ताना बेगम के वकील ने कहा कि वे अब सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। मीडिया में बेगम सुल्ताना का दर्द बुलेटिन बनाया जा रहा है कि वह झुग्गी झोपड़ी में रहने को मजबूर है।

इसी बीच आपको एक बेहतरीन इनिशिएटिव विकिपीडिया पर देखने को मिलेगा। वहां लाल किले के स्वामित्व को मुगल काल तो क्या सल्तनत काल से भी पीछे के हमारे भारतीय शासक आनंदपाल सिंह तोमर के नाम से शुरुआत किया गया है।

अनंगपाल सिंह तोमर तोमर वंश के शासक थे। 726 ईसवी में तोमर राजवंश की स्थापना हुई थी। अनंगपाल सिंह तोमर द्वितीय तोमर वंश के प्रतापी शासक हुए। इन्होंने 1064 ई. में लालकोट नाम से एक किला बनवाया था।

फिरोजशाही में कुश्क-ए-लाल अर्थात लाल महल की चर्चा है। फिरोजशाही शाहजहां से पहले ही लिखा गया था। जहांगीर के अब्बा अकबर के लिए लिखी गई अकबरनामा में भी लाल किला का उल्लेख है। कई मंडलों की शैली भी राजपूताना शैली है। जबकि यह दावा किया जाता है कि लाल किला मुगल शैली में बनाया गया। लाल किला में उपस्थित केसर कुंड द्वार पर हाथी की मूर्तियां, वाराह की मूर्तियां कब से इस्लामिक शैली हो गई? तमाम और भी ऐसे चीजों पर दरबारी इतिहासकारों ने कुछ नहीं कहा है।

जो भी हो मामला सुप्रीम कोर्ट को तो स्वीकार करना ही चाहिए। इस बहाने भी तो एक अवसर मिले कोर्ट में लाल किला को लाल महल प्रमाणित करने हेतु।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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