Positive India:Vishal Jha:
राकेश टिकैत के कुंठा की गहराई देखिए जरा। कहता है जाएंगे तब जब सरकार से टेबल पर बात होगी।
बात करना महत्वपूर्ण है या मांगे मानना? बिना बात किए मांगे मान रही है सरकार तो हर्जा क्या है? नुकसान क्या है? सरकार ने तो वार्ता के लिए 16 राउंड आमंत्रण किए थे। अब जब सरकार धरा-धर किसानों की उड़ती मांगे मानती जा रही है तो राकेश टिकैत का हलक सूखता जा रहा है। ठसक औंधे मुंह गिरता जा रहा है। उसका रसूख टूटता जा रहा है।
उसकी ठसक, उसका रसूख ही उसकी इज्जत थी। उसने अपनी यह इज्जत मोदी के कृषि कानून पर स्टेक लगाकर खरीदा था। जिसके लिए कीमत पाकिस्तान, चाइना से लेकर खालिस्तान तक ने अदा की थी।
वैसे राकेश टिकैत ने भी गलत दांव नहीं खेला था। वह जानता था कि मोदी तो हिटलर है झुकेगा नहीं। लेकिन मोदी ने टिकैत के इज्जत की जमीन ही खींच ली। कम से कम अंतिम बार बात भी कर लेते मोदी तो मिलाजुला कर अपनी इज्जत मेंटेन कर लेता टिकैत। फिर चुनाव आदि में एकाध दो सीटें जीतकर खालिस्तान का पैसा धीरे-धीरे करके चुका देता।
पर मोदी ने तो अब इसे इतना लायक भी नहीं छोड़ा। आज संसद पर खालिस्तान का झंडा गाड़ने का प्लान था। यह स्टेप भी मोदी के लिए लाभदायक जानकर टिकैत ने आज का संसद मार्च कैंसिल कर दिया। अब कुंठा के ऐसे गहरे खाई में गिर चुका है टिकैत, जहां से बस एक संवाद के लिए भी मोहताज हो रहा है।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)