आख़िर वुजू के बिना नमाज होती कैसे है सड़क या सार्वजनिक जगह पर ?
-दयानंद पांडेय की कलम से-
Positive India:Dayanand Pandey:
अकसर किसी सड़क , किसी पार्क , किसी सार्वजनिक जगह पर मुस्लिम समाज के लोगों द्वारा नमाज पढ़ने की बात ख़बरों में मिलती रहती है। रेलवे स्टेशन पर भी नमाज पढ़ते मिल जाते हैं। कई बार रेल पटरियों पर भी नमाज की फ़ोटो देखने को मिल जाती हैं। ट्रेन के डब्बों और जहाज में भी नमाज की फ़ोटो दिखी हैं। कई बार नेशनल हाइवे पर भी नमाज की खबरें मिलती हैं। घंटे-आधे घंटे के लिए ट्रैफिक ठहर जाता है। एम्बुलेंस तक रुक जाती हैं। लोग मर जाते हैं। नतीज़तन छिटपुट विरोध की ख़बरें भी मिलती रहती हैं। पूरे देश की हालत है यह। अलजजीरा जैसे अख़बार ने कल लिखा है कि भारत में मुसलमानों को नमाज नहीं पढ़ने दिया जा रहा है। साम्यवादी देश चीन में तो नमाज , बुरका , मजार , मस्जिद , टोपी , कब्रिस्तान आदि पर पूरी तरह प्रतिबंध है। लेकिन भारत में तो ऐसा कभी नहीं हुआ। फिर यह ख़बर अलजजीरा में किस आधार पर छपी है ? भारत सरकार ने अभी तक इस पर कोई ऐतराज भी नहीं जताया है।
तो क्या मस्जिद बहुत कम हैं भारत में। जो लोगों को सड़क या सार्वजनिक जगह पर नमाज की दिक़्क़त उठानी पड़ती है। ठीक-ठीक आंकड़े तो मेरे पास नहीं हैं लेकिन कई खबरें ऐसे भी मिली हैं पढ़ने को कि मस्जिद और मजार की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। फिर भी लोग सड़क पर ट्रैफिक रोक कर नमाज पढ़ते हैं। ऐसा क्यों है ? यह कौन सी प्रवृत्ति है। अतिक्रमण की यह कौन सी महत्वाकांक्षा है। मक़सद क्या है ? किसी समाजशास्त्री को इस विषय पर अध्ययन ज़रूर करना चाहिए। एक सर्वे भी ज़रुर होना चाहिए कि क्या मुस्लिम आबादी के अनुपात में मस्जिद कम हैं ? कि लोगों को नमाज के लिए सार्वजनिक जगह या सड़क , पार्क घेर कर बैठना पड़ता है।
या यह प्रवृत्ति सिर्फ़ समाज में विघटन पैदा करने के लिए पनप रही है ? लोगों को डराने के लिए ? देश में सामाजिक समरसता और शांति बहुत ज़रुरी है। शेष जिन्ना वगैरह की बात अखिलेश यादव जैसों के वोट बैंक के लिए छोड़ देनी चाहिए। जिस तरह अखिलेश यादव लगातार जिन्ना का पाठ पढ़ रहे हैं उस से तो यही लगता है कि उन का मनोबल चुनाव घोषित होने के पहले ही टूट चुका है। तो क्या मान लिया जाए कि जो लोग सड़क पर नमाज पढ़ने उतरते हैं , मनोबल बढ़ाने के सड़क पर नमाज पढ़ते हैं ?
माना जाता है कि नमाज पढ़ने के पहले वुजू बहुत ज़रुरी होता है। इसी लिए हर मस्जिद के बगल में अकसर एक कुआं ज़रुर मिलता है। अब तो मस्जिद में टोटी भी लगी देखी हैं मैं ने। अजमेर शरीफ की दरगाह पर तो बहुत सी टोटी लगी हुई देखी हैं मैं ने। तो सड़क या सार्वजनिक जगह पर यह नमाज पढ़ने वाले लोग पानी कहां पाते हैं ? वुजू कैसे करते हैं ? सड़क या सार्वजनिक जगह पर नमाज से क्या भाई-चारा खंडित नहीं होता। यह भी सामजिक अध्ययन का विषय है। यह समस्या अब गंभीर होती जा रही है। तभी कह रहा हूं कि इस विषय पर सामाजिक अध्ययन की ज़रुरत है। बहुत से मुस्लिम स्कॉलर हैं देश में। उन को भी इस बाबत अध्ययन ज़रुर करना चाहिए। आपसी सद्भाव और शांति के लिए यह बहुत ज़रुरी है।
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)