लेकिन लखीमपुर में यह पप्पू आंसू पोंछने में बाजी जीत कर पास हो गया है
-दयानंद पांडेय की कलम से-
Positive India:Dayanand Pandey:
कल का दिन योगी आदित्यनाथ का था। आज का दिन और रात दोनों ही राहुल गांधी के खाते में। बीते बरस यही अक्टूबर का महीना था। यही राहुल थे , यही प्रियंका थीं। यही नाज़ो-अदा-अंदाज़ था। यही इवेंट , यही उत्तेजना और यही ड्रामा था। लाश तब भी नहीं मिली थी , अब की भी नहीं मिली। तब हाथरस था। अब की बरस लखीमपुर है। हां , अब की दो मुख्य मंत्री भी साथ हैं जो मृतकों के परिजनों के लिए 50-50 लाख रुपए लाए हैं। दलित चिंगारी रावण लेकिन हाथरस में थे। यहां अनुपस्थित हैं। कल सतीश मिश्रा भी लखीमपुर आएंगे। अखिलेश यादव भी। जिन की हत्या किसान गुंडों ने लिंचिंग के मार्फत की , राहुल-प्रियंका उन से आज नहीं मिले। जाने सतीश मिश्रा और अखिलेश यादव भी कल मिलेंगे कि नहीं। ब्राह्मणों की हुंकार सतीश मिश्रा भी भर रहे हैं और अखिलेश यादव भी। जाने जिन ब्राह्मणों की हत्या हुई है उन के परिजनों से मिलने यह लोग भी जाएंगे या नहीं।
जो भी हो कल सारी नज़र सुप्रीम कोर्ट पर रहेगी। देखिए स्वत: संज्ञान लेने वाली सुप्रीम कोर्ट क्या कहती है। क्या करती है कल। जो भी हो लखनऊ एयरपोर्ट , सीतापुर से लगायत लखीमपुर तक सारी पोलिटिकल माइलेज तो कांग्रेस ले गई। अब इस को कितना वोट में कनवर्ट कर पाएगी कांग्रेस , यह देखना दिलचस्प होगा। बसपा , सपा आदि-इत्यादि ही नहीं , योगी आदित्यनाथ भी आज चूक गए। मुआवजा , नौकरी , एफ आई आर , अंत्येष्टि आदि के अलावा आंसू पोंछना भी एक महत्वपूर्ण तत्व होता है। अकबर इलाहाबादी याद आते हैं :
क़ौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ
रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ
आप कहते रहिए राहुल गांधी को पप्पू। लेकिन लखीमपुर में यह पप्पू मृतकों के परिजनों के आंसू पोंछने में बाजी जीत गया है। कह सकते हैं कि पप्पू पास हो गया है , लखीमपुर के पहले राउंड में। दिल्ली से आ कर। लखनऊ में बैठे लोग परशुराम की मूर्ति ही बनाते रह गए। लेकिन पप्पू एयरपोर्ट पर ड्रामा भी कर गया और बहन को सीतापुर से छुड़ा कर लखीमपुर के गांव-गांव में देर रात तक घूम-घूम कर आंसू पोंछता दिखा। बिहार का बेलछी काण्ड याद आता है। जनता पार्टी की सरकार थी तब। केंद्र में भी , प्रदेश में भी। बरसात के कारण बेलछी जाने का रास्ता इतना खराब हो गया था कि तब कोई सवारी नहीं जा सकती थी। तब इंदिरा गांधी हाथी से गई थीं बेलछी। बेलछी में दलितों की हत्या हुई थी।
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)