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कमरछठ का महत्व: गजेंद्र साहू

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पॉजिटिव इंडिया: रायपुर;
ए तिहार छत्तीसगढ़ के माई लोगन मन के अड़बड बड़का तिहार आए। ए तिहार ल बिहतहा माईलोगिन मन अपन लइका मन के सुख सांति, अउ लम्बा उमर के ख़ातिर मनाथे। ए दिन माईलोगिन मन बिना नांगर जोते वाले चउर जेला पसहर चउर कहिथे तेला खाथे। ए दिन माईलोगिन मन महुआ या फेर करन के रुख के दतवन करथे। ए दिन भइंस के दूध के चाय पीथे। गाँव म नउ मन बिहंनिया ले घरो-घर दोना-पतरी अउ महुआ के लकड़ी ल पहुँचा देथे।
ए तिहार के पूजा-पाठ के बिधि जम्मो तिहार ले अलग अउ सुग्घर हे। गाँव म मंदिर के सामने एकठन गड्ढा खने जाथे, जेला सगरी कथे। सहर म माईलोगिन मन काखरों घर नई त मईदान म सगरी बनाथे। कोनो-कोनो अपन घर के अंगना म ही सगरी खन लेथे। सगरी म पानी भरे जाथे। सगरी के चारो डाहर ल कांसी के फूल, परस के डारा , बोईर के डारा ले सजा देथे। मंझनिया के बेरा माईलोगिन मन सगरी मेर सकलाथे अउ बिधी-बिधान ले पूजा-पाठ करथे।
पूजा के समान म चना, जंवा, गहु, धान, मक्का, अउ मूंग ल चघाए जाथे। कुछ गहना-गुथा, नरियर अउ हरदी ले रंगे कपड़ा घलो रखथे। ए समान मन पूजा के सूरुबात बर एकदम ज़रूरी आए। पूजा म घलो भइंस के दूध के उपयोग करे जाथे। पूजा के जम्मो तैयारी होए के बाद महराज हा बिधी-बिधान ले पूजा करथे अउ क़िस्सा-कहिनी सुनाथे। कहिनी सुने के बाद जमो झन पूजा ल खतम कर करके परसाद ल झोंक के अपन-अपन घर आ जथे। घर आए के बाद माईलोगिन मन पूजा ले लाए पोतनी ले अपन लइका मन के कमर म छह बार पियार से पोतनी ल मारथे अउ आसीरबाद देथे।
एखर बाद पसहेर चउर के जेवन बनाय रथे ओला छह ठन दोना म अलग निकाल के गाय-बइला, कुकुर-बिलई, चिरई-चिरगूँन के खाए बर मढ़ा देथे। फेर घर के जम्मो झन ल खाय बर दे जाथे। पसहेर चउर ल दूध-दही अउ छह परकार के भाजी ले बने भाजी संग खाय जाथे।
ए परकार ले माईलोगिन मन कमरछठ तिहार ला मिलजुल के बने हांसी-ख़ुशी अउ सरधा ले मनाय जाथे।
साभार :लेखक गजेंद्र साहू.

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