त्रेता युग के सब से बड़े राम भक्त अगर हनुमान हैं तो कलयुग के बड़े राम भक्त कल्याण सिंह
-दयानंद पांडेय की कलम से-
Positive India:Dayanand Pandey:
त्रेता युग के सब से बड़े राम भक्त अगर हनुमान हैं तो कलयुग के बड़े राम भक्त कल्याण सिंह हैं। हनुमान के बाद अगर कलयुग में राम का सब से बड़ा भक्त हुआ तो वह कल्याण सिंह ही हैं। राम की जो सेवा कल्याण सिंह ने की , वह किसी और ने नहीं। लगता है जैसे राम मंदिर निर्माण के लिए बुनियाद का काम करने के लिए , राम काज के लिए ही वह पैदा हुए थे। इसी लिए वह राजनीति में आए थे। मुख्य मंत्री बने थे। सुंदर काण्ड में तुलसीदास ने लिखा है :
हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम,
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहां विश्राम।
कल्याण सिंह ने हनुमान की तरह इस चौपाई को अंगीकार किया था। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में कल्याण सिंह का नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। कल्याण सिंह न होते , उन की डिप्लोमेसी , उन की तिकड़म न होती , तो अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कभी नहीं होता। बाबरी ढांचा गिराना सही था कि ग़लत , इस पर बहस हमेशा होती रहेगी। पर बाबरी ढांचा तब नहीं गिरता तो कोई सुप्रीम कोर्ट भी वहां मंदिर बनाने का आदेश नहीं दे पाता। कोई संसद इस बाबत क़ानून नहीं बना पाती। राम मंदिर निर्माण का इतिहास जब भी , जो भी लिखेगा , कल्याण सिंह का नाम नहीं भूलेगा। राम मंदिर का समर्थक हो या विरोधी , कल्याण सिंह का नाम वह लेता ही है। हनुमान ने रावण की लंका में आग लगाई थी तो कल्याण सिंह ने हिप्पोक्रेट सेक्यूलरों की लंका में आग लगाई थी और राम मंदिर का सपना बुन लिया था। लोहिया ने लिखा है कि राम, कृष्ण और शिव भारत में पूर्णता के तीन महान स्वप्न हैं। तो राम का स्वप्न पूरा किया कल्याण सिंह ने।
वह जो कहते हैं कि सरकार इक़बाल और धमक से चलती है। तो कल्याण सिंह उसी इक़बाल और धमक से सरकार चलाते थे। बड़े-बड़ों को ठिकाने लगाया। अपराधमुक्त उत्तर प्रदेश और गड्ढामुक्त सड़कें ही उन का जैसे स्लोगन था। बहुतेरे मुख्य मंत्रियों से मेरा वास्ता पड़ा है। बहुत करीब से देखा है। पर कल्याण सिंह जैसा दूसरा मुख्य मंत्री मैं ने उत्तर प्रदेश में दूसरा नहीं देखा। उन के साथ की बहुत सी बातें और यादें हैं। उन के साथ जाने कितनी यात्राएं याद आ रही हूं। हवाई यात्राओं में वह अपने साथ भुना चना और मखाना रखते थे। मुट्ठी भर-भर खाते-खिलाते थे। उन के कई इंटरव्यू याद आ रहे हैं। पूरी ईमानदारी और पूरी निष्ठा से उत्तर प्रदेश सरकार चलाई थी उन्हों ने। एक समय भाजपा में अटल , आडवाणी के बाद तीसरे नंबर पर कल्याण सिंह का नाम लिया जाने लगा था। बस राजनाथ सिंह की शकुनी चाल में फंस कर वह अटल बिहारी वाजपेयी से टकरा गए। और मुख्य मंत्री की कुर्सी गंवा कर राजनीति के नेपथ्य में चले गए। उन के साथ ही उत्तर प्रदेश में भाजपा भी नेपथ्य में चली गई। मुलायम सिंह के साथ एक अपमानजनक समझौता भी किया कल्याण सिंह ने कुछ समय के लिए। उत्तर प्रदेश में संगठित अपराध और भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए निर्णायक फैसलों के लिए भी हम कल्याण सिंह को जानते हैं। अयोध्या में राम मंदिर अभियान में सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र दे कर भले बाबरी को बचाने का वादा किया था। पर सार्वजनिक रूप से वह लगातार कहते रहे थे कि अयोध्या में मैं गोली नहीं चलाऊंगा। यह ज़रूर है कि राम काज के लिए हनुमान को लंका में विभीषण मिले थे , कलयुग में कल्याण सिंह को नरसिंहा राव मिले।
पिछड़ी जातियों की राजनीति करने वाले कल्याण सिंह को एक समय उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने नाको चने चबवा दिए थे। लेकिन कल्याण सिंह ने उन्हें न सिर्फ पटकनी दे दी थी , भरी विधान सभा में रोमेश भंडारी से अभिभाषण में माफ़ी भी मंगवा दी थी। सामान्य भाषा में इसे थूक कर चाटना भी कहते हैं। जो रोमेश भंडारी ने किया। 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी थी तब राम नरेश यादव मुख्य मंत्री थे। कल्याण सिंह स्वास्थ्य मंत्री और मुलायम सिंह सहकारिता मंत्री। मुलायम सिंह जब मंत्री बने तब भी जनसंघ धड़े के समर्थन से और जब पहली बार 1989 में मुख्य मंत्री बने तब भी भाजपा के समर्थन से। बाक़ी सेक्यूलरिज्म का च्यवनप्राश भी सब से ज़्यादा मुलायम ही उत्तर प्रदेश में खाते रहे हैं। जाने किस मुंह से। लेकिन क्या कीजिएगा यह राजनीति है। कहते हैं कभी गाड़ी , नाव पर। कभी नाव गाड़ी पर। जो भी हो कल्याण सिंह जैसे भी थे खुली किताब थे। ईमानदार थे और निडर भी। भाजपा में लोग उन्हें बहुत आदर से बाबू जी कहते थे। कृपया मुझे कहने की अनुमति दीजिए कि राजनाथ सिंह की शकुनि चाल में अगर कल्याण सिंह न फंसे होते , अपने अहंकार को थोड़ा सा दबा ले गए होते तो वह केंद्र की राजनीति में होते। और कि राज्यपाल नहीं नियुक्त हुए होते। राज्यपाल नियुक्त कर रहे होते। हो सकता था कल्याण सिंह राजनाथ सिंह को ही कहीं राज्यपाल नियुक्त कर दिए होते। बहरहाल कल्याण सिंह भाजपा में इकलौते थे। जो कभी वार करना भी होता तो पीछे से नहीं , सामने से और खुल्ल्मखुल्ला करते थे। कल्याण सिंह जी , आप सर्वदा याद आएंगे। आप की कर्मठता भी। विनम्र श्रद्धांजलि !
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)