तो लखनऊ में लगी तमाम मूर्तियों में कोई मूर्ति तिलक , तराजू या तलवार का भी प्रतिनिधित्व क्यों नहीं करती?
-दयानंद पांडेय की कलम से-
Positive India:Dayanand Pandey:
कांशीराम कभी अयोध्या में राम मंदिर की जगह शौचालय बनवाना चाहते थे। जो लोग कभी अयोध्या में राम मंदिर की जगह शौचालय , अस्पताल और विद्यालय बनाने की बात करते थे , वही लोग अब अयोध्या में मंदिर बनाने की बात बहुत ज़ोर-शोर से अयोध्या में जा कर करने लगे हैं। क्या तो वह साल-दो साल में राम मंदिर बना कर आप की हथेली पर रख देंगे। गोया मंदिर नहीं , मंदिर का नक्शा बनाना चाहते हों। एक कायदे का घर तो साल भर में बन नहीं पाता पर यह लोग भव्य राम मंदिर साल भर में बनाने की शेखी बघार रहे हैं। तिलक , तराजू और तलवार / इन को मारो जूते चार का नारा लगाने वाले यही लोग अब ब्राह्मणों को सिर पर बिठाने की बात फिर से करने लगे हैं। मनुवाद के नाम पर ब्राह्मणों के खिलाफ विष-वमन करने वाली फैक्ट्री पर जैसे ताला लग गया है। हाथी नहीं गणेश है , ब्रह्मा , विष्णु , महेश हैं का नारा धो-पोछ कर फिर बाहर निकाला गया है। पर इस पाखंडी , बिल्डर और मायावती की जूतियां साफ़ करने वाले सतीश मिश्रा से कोई पूछे तो बहुजन के नाम पर लखनऊ में लगी तमाम मूर्तियों में कोई मूर्ति तिलक , तराजू या तलवार का भी प्रतिनिधित्व क्यों नहीं करती। किसी ओ बी सी की भी कोई मूर्ति क्यों नहीं है। ब्रह्मा , विष्णु , महेश या गणेश भी क्यों नहीं दीखते इन मूर्तियों में कहीं। सिर्फ दलितों और बसपा के चुनाव चिन्ह हाथी की ही बहार क्यों है। एक बार मायावती के मुख्य मंत्री रहते मैं ने एक इंटरव्यू में उन से यही सवाल पूछ लिया था। मेरी नौकरी जाते-जाते बमुश्किल बची थी। वह इंटरव्यू भी नहीं छपा।
जीते जी अपनी मूर्तियां लगवा लेने वाली मायावती गांधी को शैतान की औलाद कहती हैं । यह कह कर अराजकता फैलाती हैं । नफ़रत के तीर चलाती हैं । इन के आका कांशीराम की राजनीतिक पहचान ही इसी अराजकता के चलते हुई जब वह गांधी को शैतान की औलाद कहते हुए दिल्ली में गांधी समाधि पर जूते पहन कर भीड़ ले कर वहां पहुंचे । वहां तोड़-फोड़ की। गांधी समाधि की पवित्रता को नष्ट किया । उस गांधी समाधि पर जहां दुनिया भर के लोग आ कर शीश नवाते हैं । श्रद्धा के फूल चढ़ाते हैं ।
लोग यह क्यों भूल जाते हैं ? यह कौन मौकापरस्त लोग हैं ? ऐसे हिप्पोक्रेटों की शिनाख्त कर इन की सख्त आलोचना क्या नहीं की जानी चाहिए ?
ठीक है आप गांधी से असहमत हो सकते हैं , पूरी तरह रहिए , कोई हर्ज़ नहीं है । लेकिन किसी पूजनीय महापुरुष को आप शैतान की औलाद क़रार दें और उस की समाधि पर जूते पहन कर भारी भीड़ ले कर जाएं और वहां तोड़-फोड़ करें , पवित्र समाधि को अपमानित करें , अपवित्र करें । और आप चाहते हैं कि लोग आप के इस कुकृत्य को भूल भी जाएं ? इस लिए कि आप दलित हैं ? मुश्किल यह है कि हमारे तमाम हिप्पोक्रेट मित्र इस अराजक घटनाक्रम को याद नहीं करना चाहते । यह सब याद दिलाते ही उन्हें बुखार हो जाता है । वह दवा खा कर चादर ओढ़ कर सो जाते हैं । यह वही राजनीतिक संस्कृति है जो तिलक तराजू और तलवार , इन को मारो जूते चार बकती हुई कालांतर में किसी मूर्ख के अपशब्द के प्रतिवाद में उस की बेटी बहन को पेश करने की खुले आम नारेबाजी में तब्दील हो जाती है । क्यों कि लोग दलित एक्ट और दलित फोबिया के बूटों तले दबे हुए हैं । और हिप्पोक्रेट्स चादर ओढ़ कर , कान में तेल डाल कर सो जाना अपने लिए सुविधाजनक पाते हैं । ज़रुरत इसी मानसिकता और हिप्पोक्रेटों को कंडम करने की है । अभी से । क्यों कि गांधी को शैतान की औलाद कहना भी अपराध ही है । आप दलित हैं तो आप को किसी को कुछ भी कहने का अधिकार किस संविधान ने दे दिया ? गांधी को शैतान की औलाद कहना , किसी की बेटी बहन को पेश करने का नारा लगाना अपराध है । गोडसे हत्यारा है गांधी का लेकिन मायावती भी गांधी की चरित्र हत्या की दोषी हैं । राजनीति में गाली गलौज की दोषी हैं । मायावती और उन की बसपा को यह तथ्य भी ज़रुर जान लेना चाहिए कि भारत सिर्फ़ दलितों का देश नहीं है । दलित होने के नाम पर वह देश को ब्लैकमेल करना बंद करें । बहुत हो गया ।
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)