भारत की बेटी मीराबाई चानू ने सिल्वर मेडल जीत विश्व पटल पर स्थापित किया राष्ट्रप्रेम
ओलंपिक सिल्वर मेडलिस्ट मीराबाई चानू को हार्दिक शुभकामनाएं।
Positive India:Vishal Jha:
मीराबाई चानू को शुभकामना लिखने के क्रम में मेरे मन में विचार आया कि मीराबाई चानू को 16वीं सदी के भक्तिकाल की मीराबाई से जोड़ दूं।
लेकिन मैं हिम्मत नहीं कर पाया। क्या निर्गुण! क्या शगुन! मीराबाई के कृष्ण प्रेम की ज्वाला के सामने मीराबाई चानू के राष्ट्रप्रेम को बैठाने की हिम्मत नहीं कर पाया। क्षोभ है मुझे।
पर एक सज्जन ने हिम्मत दिखाई। मीराबाई चानू को “आज की मीराबाई” लिखा। देख कर मैं गदगद हो गया।
किंतु मसला क्या है? मसला है कि वहां भी मैंने देखा लोग अपनी कुंठा का वमन करने पहुंचे हुए थे। एक ने तो लिखा था “मीराबाई सिल्वर जीत कर लाई तो वह कम है क्या? कि उत्तर भारतीय एक रेफरेंस को चिपकाया जाए।” बखूबी काउंटर मिला इस टिप्पणी को, अलग बात है।
लेकिन आप यहां वामपंथियों में एक तरह की घबराहट महसूस करेंगे। जैसे ही मौका मिला कृष्णभक्त मीरा पर ही टूट पड़ा। ना मौका मिलता तो कुछ और ही सही। कि जैसे मीराबाई चानू का नाम मीराबाई ही क्यों है? यहां एक तरह का षड्यंत्र दिखेगा आपको। राष्ट्र प्रेमियों के सिर से सनातन प्रेम का आश्रय हटा देने का षड्यंत्र।
भारत की एक बेटी जब विश्व पटल पर राष्ट्रप्रेम स्थापित करती है, तब भी अगर एक खेमा हीनताबोध ही प्रदर्शित करता है, तो मुझे लगता है बिना सोचे-समझे ऐसे लोगों को राष्ट्रद्रोही कहने में देर नहीं करना चाहिए।
ये लोग सरकार और सेना के मसले पर तो डिफेंस ले लेते हैं कि राजनीतिक विरोध को राष्ट्रद्रोह कहना ठीक नहीं। किंतु आश्चर्य है मुझे कि चानू के चांदी में कौन सी राजनीति है?
जय वीर बजरंग बली।
जय सियाराम।
साभार-विशाल झा(ये लेखक के अपने विचार हैं)