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इस फिल्म को जिसने भी देखा वह सब सड़कों पर आ गए। कहीं उनमें से आप भी तो नहीं?

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
आज से करीब डेंढ साल पहले पश्चिमी देशों में एक पिक्चर रिलीज हुई । इस फिल्म की सफलता ने अपने को विश्व का चिकित्सा के मामले मे गर्व करने वालों को भी, उनके इस गुरूर का खामियाजा भुगतना पड़ा। लोग इस नामुराद फिल्म को नहीं देखना चाहते थे,पर वहां के थियेटर हाउसफुल थे । पूरी कोशिश थी कि इसे थियेटर से बाहर निकालकर फेंका जाए । अभी कहीं जाकर थोड़ी सी राहत मिली है  ।

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पर जब वहां पिक्चर रिलीज थी, दुर्भाग्य से हम लोगों की यह कोशिश नहीं रही कि हम इससे बच सके । नेताओं के राजनीति की तारीफ करनी होगी कि इस फिल्म को रिलीज करने के लिए उतावले से हो रहे थे । अंततः भारी कोशिश के बाद इस फिल्म मामूली रूप से यहां भी रिलीज हो गई । यहां तो इस फिल्म को लेकर खूब राजनीति हुई। सब चाहते थे कि उनके क्षेत्र का सर्वाधिकार उन्हे ही मिले ।

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मार्च के अंत मे रिलीज हुई इस पिक्चर के पर्दे के पीछे के सब कलाकार न चाहते हुए खुलकर सामने आए । पर डिस्ट्रीब्यूटरो ने अपने क्षेत्र के मालिकाना हक का जमकर फायदा उठाया।  इन डिस्ट्रीब्यूटर में से कुछ ने तो जानबूझकर, अफवाह फैलाकर या मजबूर कर ऐसा माहौल बनाया कि जो लोग इसे देखना नहीं चाहते थे, उन्हे सड़कों पर लाकर इस फिल्म को देखने के लिए जहां विवश कराया, वहीं यह भी सुनिश्चित कर लिया कि दूसरे प्रांतों मे भी यह फिल्म वहाँ के थियेटर में भी लग सके । हमारे नेता लोग सम्मानित समाजसेवी है । अंततः इन लोगों की कोशिश व्यर्थ नहीं गई। पूरे देश में आखिरकार यह फिल्म लग ही गई ।

पर इसके परिणाम बिलकुल ही अच्छे नहीं थे ।  जिसने भी देखा उसे कम से कम चौदह दिन के लिए एकांत मे रहने की मजबूरी सी हो गई।  पर कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्हे देखने के बाद किसी  को वेंटिलेटर मे रहना पड़ा । ईश्वर की कृपा से सब लुटाकर ही बच पाये । पर कुछ तो ऐसे रहे जिन्हे इसे देखने के बाद अपनी जान से ही हाथ धोना पड़ा। बात यहां खत्म नहीं हुई। चाहते तो पिक्चर पर बंदिश लगाकर कुछ राहत पा सकते थे । खूब राजनीति हुई । भारत शायद विश्व का पहला लोकतंत्र है जहां यह फिल्म भी पार्टी, धर्म, जात और तो और प्रदेश देखकर हो गया ।  सिनेमा हाल मे थोड़ी भीड़ कम हुई, फिर दर्शको में इस पिक्चर को देखने के लिए उतावलापन दिखने लगा ।  इसके कारण, इससे बचने के लिए जो भी ऐतिहाद बताये थे, उसे पूरी तरह से धत्ता बताते हुए, फिर से लोग इसकी टिकट लेने के लिए, जोरदार ढंग से बाजार मे बाहर निकले। सही बताऊँ, आशातीत सफलता भी मिलने लगी । शहरों के थियेटर फुल होने लगे। हालात यह हो गए कि जो थियेटर नहीं चल रहे थे, इसके रिलीज होने के बाद वहां भी दर्शको की जगह नहीं रह गई थी । हालात ऐसे हो गये कि बडे संपन्न लोग भी थोड़े से हालत में ही भर्ती हो गये । अब तो थियेटर मे तो घुसने की रेस सी चल पड़ी। लोगों को पहचान निकालनी पड़ी । 
खैर, इस बीच मे बहुत से किरदार आए । इस फिल्म से राहत के विज्ञापन पर ही, जैसे खबरें आ रही हैं कि एक सौ पचास करोड़ रूपये खर्च कर दिये। पांच हजार लोगों को पूरी सुविधाओं से युक्त के दावे पर ब्लास्ट ब्लास्टर रिलीज हुई तो होरडिंग के दावों के परखच्चे उड़ गए । 

मजे की बात यह है कि जैसे बाहर लोग फल्ली पॉपकॉर्न, चिप्स, चाय आदि लेकर खड़े रहने वाले, यहां अपने ही भूमिका में कोई आक्सीजन सिलेंडर तो कोई वेंटिलेटर तो कोई अपने घर मे निर्मित रेमडेसिविर इंजेक्शन उंचे दामों मे बेचने को लेकर खड़े थे खड़े हैं , जिसकी कीमत भी निर्दोष आदमी अपने जान को देकर चुका रहा है।  सब इस सिस्टम का फायदा उठा रहे है । वैसे भी यहां बिकने वाले सामानों का रेट, वैसे ही दर्शको को मालूम है, ज्यादा रहता ही है ।  हालात यह है कि मरने के पहले लोग पूरी सिस्टम से मदद मांगने की अपील सार्वजनिक रूप से जाहिर कर रहे है । चलो मेरे दोस्तों पिक्चर जब तक नहीं उतरेगी, जब तक आप सहयोग नहीं दोगे।  इस नामुराद कोविड-19 फिल्म को जिनने देखा है और जिनने नहीं देखा है सब सड़कों पर आ गए है । अब तो सुधर जाओ यार! यमदूत भी थक गये है!! बस इतना ही
लेखक- डॉ चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ-अभनपूर(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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