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क्या वाकई कोरोना ईश्वरीय अवतार है?

भारत वर्ष के सन्तों के हृदय की पीड़ा को शब्दों में उतारा गया है । आप भी पढ़िए...

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Positive India:वैद्य फूल चन्द शर्मा;बरेली:
*कोरोना ईश्वरीय अवतार*
प्रिय जनों, यह हमारा निज विचार है स्वस्थ लगे तो सहमति और आशीर्वाद देना!
*यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत*
*अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्*
*परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्*
*धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे*
गीता अ०4 मं०7-8
*जब जब होइ धरम कै हानी*
*बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी*
*करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी*
*सीदहिं विप्र धेनु सुर धरनी*
*तब तब धरि प्रभु विविध सरीरा* *हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा*
रामचरितमानस बा०दो०121
प्रिय जनों अत्यन्त कटु लिखने जा रहा हूंँ *क्षमा करना*
आज मानव कितना स्तरहीन हो गया,मानवता से देखो
*मौत से प्यार नहीं , मौत तो हमारा स्वाद है ।*

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पशु पक्षियों का, गाय, बैल,भैंस,ऊंट,बटेर,तीतर का, मुर्गे का, हलाल का, बिना हलाल का, ताजा बच्चे का, भुना हुआ,छोटी मछली, बड़ी मछली, हल्की आंच पर सिका हुआ । न जाने कितने बल्कि अनगिनत स्वाद हैं मौत के!
क्योंकि मौत किसी और की, ओर स्वाद हमारा ।

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स्वाद से व्यापार कारोबार बन गई मौत ।
मुर्गी पालन, मछली पालन, बकरी पालन, पोल्ट्री फार्म्स ।
नाम “पालन” और उद्देश्य “हत्या” । स्लाटर हाउस तक खोल दिये । वो भी ऑफिशियल । गली गली में खुले नान वेज रेस्टॉरेंट मौत का व्यापार नहीं तो और क्या हैं ? मौत से प्यार और उसका कारोबार इसलिए क्योंकि मौत हमारी नहीं है । जो हमारी तरह बोल नहीं सकते, अभिव्यक्त नहीं कर सकते, अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ नहीं हैं, उनकी सहजता को हमने अपना बल कैसे मान लिया ? कैसे मान लिया कि उनमें भावनाएं नहीं होतीं ? या उनकी आहें नहीं निकलतीं ?

डाइनिंग टेबल पर हड्डियां नोचते बाप बच्चों को सीख देते है, बेटा कभी किसी का दिल नहीं दुखाना ! किसी की आहें मत लेना ! किसी की आंख में तुम्हारी वजह से आंसू नहीं आना चाहिए !

बच्चों में झुठे संस्कार डालते बाप को, अपने हाथ में वो हडडी दिखाई नहीं देती, जो इससे पहले एक शरीर थी , जिसके अन्दर इससे पहले एक आत्मा थी, उसकी भी एक मां थी …?? जिसे काटा गया होगा ? जो कराहा होगा ? जो तड़पा होगा ? जिसकी आहें निकली होंगी ? जिसने श्राप बद्दुआ भी दी होगी ?

कैसे मान लिया ? कि भगवान द्वारा की गई रचना केवल मानव ही है ? कैसे मान लिया कि जब जब धरती पर अत्याचार बढ़ेंगे तो भगवान सिर्फ तुम मानवों की रक्षा के लिए अवतार लेंगे ?

क्या मूक जानवर उस परमपिता परमेश्वर की सन्तान नहीं हैं ?
*अरे मूर्खो-*
*जलचर थलचर नभचर नाना*
*जे जड़ चेतन जीव जहाना*
*सब मम प्रिय सब मम उपजाए*

उस ईश्वर को इनकी रक्षा की चिन्ता भी है ? समझ लो-

आज कोरोना वायरस उन जानवरों के लिए, ईश्वर के अवतार से कम नहीं है ।

*वेद पुराण भगवत गीता रामायण में भगवान ने स्वयं अवतार का प्रयोजन बताते हुए कहा है। जब-जब धर्म की हानि और अधर्म का उत्थान होता है, तब दुष्टों के विनाश के लिए मैं विभिन्न युगों में, माया का आश्रय लेकर उत्पन्न होता हूंँ। इसके अलावा भागवत महापुराण में भी कहा गया है कि भगवान तो प्रकृति संबंधी वृद्धि-विनाश आदि से परे अचिन्त्य, अनन्त, निर्गुण हैं। तो अगर वे इन अवतार रूप में अपनी लीला को प्रकट नहीं करते तो जीव उनके करुणा वान दयालु गुणों को कैसे समझते?*
*अतः प्रेरणा देने और मानवों को शिक्षा देने के लिए उन्होंने अवतार रूप में अपने आप को प्रकट किया है।*

जब से इस वायरस ने अपना प्रचण्ड रूप दिखाया है, जानवर स्वच्छंद घूम रहे है । पक्षी चहचहा रहे हैं । उन्हें पहली बार इस धरती पर अपना भी कुछ अधिकार सा दृष्टि गोचर हुआ है । पेड़ पौधे ऐसे लहलहा रहे हैं, जैसे उन्हें नई जिंदगी मिली हो । धरती को भी जैसे सांस लेना आसान हो गया हो ।

सृष्टि के निर्माता द्वारा रचित करोड़ो करोड़ योनियों में से एक कोरोना ने तुम्हें तुम्हारी (स्थिति) औकात बता दी । घर में घुस के मारा है तुम्हें । और मार रहा है । ओर उसका तुम कुछ नहीं बिगाड़ सकते । अब घंटियां बजा रहे हो, इबादत कर रहे हो, प्रेयर कर रहे हो और भीख मांग रहे हो उससे की हमें बचा ले ।और दोष दे रहे हो डाक्टर हास्पिटल व सरकार को!

धर्म की आड़ में उस परमपिता के नाम पर अपने स्वाद के लिए कभी ईद पर बकरे काटते हो, कभी दुर्गा मां या भैरव बाबा के सामने बकरे की बली चढ़ाते हो ।
कहीं तुम अपने स्वाद के लिए मछली का भोग लगाते हो ।

कभी सोचा…..!!!
अरे तुम क्या जानो ईश्वर का स्वाद क्या होता है ? ….क्या है उनका अहार अथवा भोजन ?

किसे ठग रहे हो ? भगवान को ? अल्लाह को ? या खुद को ? तुमने तो उस एक मात्र परमपिता के भी बंटवारे कर लिए ।

मंगलवार को नानवेज नही खाता …!!!
आज शनिवार है इसलिए नहीं…!!!
अभी रोज़े चल रहे हैं ….!!!
नौ दुर्गों में तो सवाल ही नही उठता….!!!

*झूठ पर झूठ….*
*….झूठ पर झूठ*
*….झूठ पर झूठ…!!*

फिर कुतर्क सुनो….. इन मूर्खाधिराजों का फल सब्जीयों में भी तो जान होती है …? …..तो सुनो फल सब्जियाँ संसर्ग नहीं करतीं , इसी लिए उनका भोजन उचित है ।
अरे भईया
ईश्वर ने विवेचनात्मक बुद्धि सिर्फ तुम्हें प्रदान किया । ताकि तमाम योनियों में भटकने के बाद मानव योनि में तुम जन्म मृत्यु के चक्र से निकलने का मार्ग ढूँढ सको । लेकिन तुमने इस मानव योनि को पाते ही स्वयं को भगवान समझ लिया ।

आज कोरोना के रूप में मृत्यु हमारे सामने खड़ी है ।
अब घरों में दुबकना क्यों ? डरना क्यों ? आप तो भगवान के भी रचयिता है ? आगे बढ़ो ? क्यों रुके हो ?
मौत से प्यार है ना ? मौत तो स्वाद है ना ?

तुम्हीं कहते थे, की हम जो प्रकृति को देंगे, वही प्रकृति हमें लौटायेगी । मौते दीं हैं प्रकृति को तो मौतें ही लौट रही हैं ।

*बढो…!!!*
*आलिंगन करो मौत का….!!!*
*प्रिय जनों-*
यह संकेत है उस ईश्वर का ।
प्रकृति के साथ रहो । प्रकृति के होकर रहो ! क्योंकि प्रकृति उसकी सर्वेश्वरीहै! *भूमिरापोऽनलो वायु खं मनो बुद्धिरेव च*
*अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा* गीता अ०7मं०4
*प्रकृति समीप रहे जो भाई*
*उनके कारज सब सधि जाई*

नहीं तो भईया— र्ईश्वर अपनी ही बनाई कई योनियों को धरती से विलुपत कर चुके हैं हम किस खेत की मूली हैं। उन्हें एक क्षण भी नही लगेगा ।
*जो चेतन को जड़ करइ जड़ै करइ चैतन्य*
*अस समर्थ रघुनायक भजहिं जीव ते धन्य* रामचरितमानस
प्रिय जनों-
*चिंता नही -चिंतन करें*

🙏🙏 *जय सियाराम* 🙏🙏

*सदैव हरिनाम जपते रहो, कभी भी अमंगल नहीं होगा! क्षमा याचना के साथ *इति*
लेखक:वैद्य फूल चन्द शर्मा-बरेली(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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