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कोरोना अंधा गूँगा बहरा है पर हम नहीं: गजेंद्र साहू

- गजेंद्र साहू की कलम से-

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पॉजिटिव इंडिया रायपुर 14 अप्रैल 2021.

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नवंबर 2019 कोरोना पूरे विश्व में मौत बनकर घूम रह था वहीं दूसरी ओर कोरोना की औक़ात भारत में केवल जोकर मात्र की थी जिस पर हम हँस रहे थे और उस पर जोक बना रहे थे। कब ये जोकर भयावह जानवर बना पता ही नही चला और भारत में इसने मौत का तांडव शुरू कर दिया । सरकार कोई भी हो अपने से ज़्यादा चीन पर भरोसा रखा कि ये कोरोना भी चीनी सामान की तरह फुस्स्स हो जाएगा। भारत ने शाहरुख़ खान की तरह दोनो बाँहें फैला कर कोरोना को आने का निमंत्रण दिया गया । ये बात अलग है कि विपक्षी दल समय-समय पर सरकार को कोरोना के प्रकोप से अवगत कराते रहे पर सरकार ने विपक्ष की बात से उसी तरह किनारा किया जिस प्रकार अंगद की चेतावनी को हलके में लेकर रावण ने नज़रअन्दाज़ कर दिया था फिर जो हुआ नतीजा आप सभी को पता है ।
अब कोरोना ने अपने उड़ते मज़ाक़ और घटती इज्जत का पूरा बदला लिया। वैसे भी भारत में भीड़ की तलाश में उसे मेहनत करने की आवश्यकता ही नही थी । भारत जैसे महान देश में जहां जेसीबी की खुदाई में ढाई सौ लोग ऐसे भीड़ लगाकर खड़े हो जाते है जैसे कुछ देर में ज़मीन से खूब सोना निकाला जाएगा और वहाँ खड़े सभी महान बिन बुलाए अतिथिगण को बराबर हिस्से में बाँट दिया जाएगा ।
ख़ैर कोरोना ने धीरे-धीरे भारत को अपनी जद पर के लिया । बड़े शहर से लेकर छोटे शहर तक उसने पैर पसार लिए ।शुरुआत में ये अमीरों की बीमारी के नाम से जाना जाने लगा, जिनको होती थी वो सीना ठोक के कहने लगते थे हम भी विदेशी मूल की पैदाइश है और अडानी-अम्बानी जैसों अमीरों में अपनी गिनती कराने में लग गए। पर कुछ समय बाद ये बीमारी जब सदियों से चली आ रही हमारी रूढ़ीवादी परम्परा जातिगत छुवाछूत की शक्ल लेने लग गई तब जाकर लोगों ने इस बीमारी को गुप्त रोग की तरह छुपाना शुरू किया। (यदि किसी परिवार में कोरोना हो जाता तो लोग उस घर से, परिवार से दूरी बनाने लग गए। उस घर का राशन, पानी, दूध, सब्ज़ी सब बंद कर दिया गया)। लोगो ने इसे छुपाने का महापाप किया जिसका नतीजा अब इसने विकराल रूप ले लिया था, ये बीमारी अब ग्रीन कार्ड वाले से राशन कार्ड वाले तक पहुँच चुकी थी।
कोरोना धीरे-धीरे कैन्सर की तरह फैल रह था तभी टीवी पर छोटी लाल रंग की पट्टी में मोटे सफ़ेद रंगो में ब्रेकिंग न्यूज़ का आगमन हुआ जिसमें कहा गया प्रधानमंत्री आज भारत की जनता को सम्बोधित करेंगे। लोगों ने प्रधानमंत्री जी द्वारा रात 8 बजे वाले GST और नोटबंदी के फ़ैसले जैसे कुछ अनुमान लगाना शुरू कर दिया था पर इस बार फ़ैसले का नतीजा आम जनता पर नहीं कोरोना पर निकलना था। उन्होंने भारतीय परम्परा के विपरीत समय पर अपना सम्बोधन शुरू किया और जनता द्वारा जनता कर्फ़्यू का एलान किया। सभी लोग संडे को अपने-अपने घर में क़ैदी के समान समय काटा कुछ संयुक्त परिवार वालो को तो घर के सदस्यों की सही संख्या तब ही पता चली होगी। पर शायद प्रधानमंत्री जी ने जनता के लिए कुछ और सोच के रखा था और वो था लॉकडाउन। लॉकडाउन लगाया गया और जनता पर कड़ाई से लागू किया गया। कड़ाई ऐसा कि जितना मार आज तक अपराधियों को न पड़ी हो उससे कही ज़्यादा मार आम जनता को पड़ी जो शायद ज़रूरी भी था।
तब एक फ़ैसला आया कि कोरोना से लड़ रहे साथियों के लिए ताली ,थाली बजाकर उनका सम्मान किया जाए। इस मार भरी ज़िंदगी से ऊब चुके लोगों ने इसे राहत के रूप में उत्सव भरी खबर मान लिया। उन्हें यह भी विश्वास हो चला था कि कोरोना ताली-थाली की आवाज़ सुन भारत से उल्टे पाँव भाग जाएगा। लोगों ने ताली-थाली टूटते तक बजाई इसके साथ घर के डिशटीवी की छत्री , पराट , टीना बजा-बजाकर कर कोहराम मचा दिया। इंदौर में तो कुछ लोगो ने तो डीजे-धूमाल बजाया और बम-फटाखे फोड़कर कोरोना की बारात ही निकाल दी। लोग निश्चिंत हो चुके थे कि अब कोरोना बहरा हो चुका है और भारत को अंग्रेजो की भाँति छोड़कर चला जाएगा। ठीक इसके विपरीत कोरोना ने अपनी बारात को ही निशाना बनाया और सबसे अधिक केस इंदौर से ही आए जो देशभर में सबसे बड़ा कोरोना ज़ोन और अधिक मौत वाला शहर बन गया।
पर क़हर हर जगह नही पहुँचा था तो अब लोगों को अगले टास्क का इंतज़ार सताने लगा। कुछ ही समय में वो भी आ गया। इस बार घरो की लाइट बंद कर मोबाइल की फ़्लैश लाइट और दिया जलाने का फ़रमान जारी हुआ। लोगो से पूर्ववत आग्रह किया गया कि पिछली बार की तरह कोरोना की बारात का आयोजन न हो। पर इस बार तो लोगों ने कुछ और ही सोच रखा था अब उन्हें लगा कि अंधेरे में कोरोना अंधा हो जाएगा। यक़ीन मानिए लोगों ने घरो में दीये जलाए, पटाखे फोड़े और राम जी के रावण वध उपरांत अयोध्या आने पर दिवाली मनाई गई थी ठीक उसी प्रकार कोरोंना का भारत से चले जाने का जश्न उस रात छोटी दिवाली स्वरूप मनाई गई। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ बल्कि आँकड़े बद से बदतर बढ़ने लगे और मौत का आँकड़ा आसमान छूने लगा। हाँ भारत त्योहारों का देश है यदि कोई त्योहार न पड़े तो भी हम भारतवासी सूखे पड़े महीने और ग़म के माहौल को भी त्योहार में बदल देते है और यही हमारे आपसी भाई-चारे और एकता का प्रमाण है पर शायद कोरोना को हमारी एकता रास नही आई।
समय चक्र नियमानुसार आगे बढ़ा। सितम्बर से फ़रवरी में कोरोना की रफ़्तार धीमे पड़ी और लोगों ने फिर गलती की कि इसे हल्के में लेना शुरू किया। कोरोना ने आतंक के बीच त्योहार का दर्द अपने सीने में छुपाए फिर वापसी कर दी है और इस बार दुगुनी ताक़त से की। इस बार कोरोना डरा नहीं रहा सीधे सजा-ए-मौत बनकर आया है।
हमने पिछले बार उसे ताली-थाली बजाकर बहरा तो कर दिया, घरों में अंधेरा कर उसे अंधा भी कर दिया, वो चिल्लाता रहा घर में रहो मुझसे डरो पर भीड़ और हमारी लापरवाही ने उसे गूँगा करके छोड़ा। अब कोरोना को न दिखता है, न सुनाई देता और न ही वो चेतावनी दे सकता है। इस बार तो वो सीधे हमला कर रह है।
पर एक अच्छी बात ये कि हम तो अंधे नही है। हमें आस-पास के हालातों को देखना होगा, बढ़ते मौत के आँकड़ों को देखना होगा।
हम बहरे नही है। हमें सरकार की बात सुननी होगी, हमें डॉक्टर की बात सुननी होगी।
हम गूँगे नही है। हमें ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को समझाना होगा, उन्हें बताना होगा कि इस प्रलयकारी समय में कैसे बच कर रहे।
ये समय है एक दूसरे की मदद करे और इस नाज़ुक परिस्थिति में सम्भल कर रहे। इस बार अपनी सूझबूझ से कोरोना को पूरी तरह से खदेड़ने का संकल्प लेना होगा। क्यूँकि कोरोना अंधा, बहरा, गूँगा है पर हम नहीं..।।
लेखक :गजेंद्र साहू-(ये लेखक के अपने विचार है)

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