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वाह रे नेताओं देश को बाजार बना दिया!

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
वाह रे नेताओं देश को बाजार बना दिया और लोकतंत्र को इस बाजार से खरीदने का सामान बना दिया! पूरे पांच साल सत्ता के गलियारों का मजा लेने के बाद  जब पुनः पांच साल बाद जनता का सामना कैसे किया जाए यह दलो और नेताओं के लिए प्रश्न बनकर खडा होता है । यहां तो कहने को लोकतंत्र है। मत कैसे प्रभावित किये जाते है? कैसे खरीदें जाते है? कैसे दारू से लिया जाता है? यह हर चुनाव के प्रत्याशियों के लिए सामाग्री है । अभी के चुनाव मे ममता दीदी का खेला होबे बहुत चला । बस दीदी ने तो अभी बताया पर खेला होबे तो हमारे नेता कब से कर रहे है । इस खेला होबे मे प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष सब शामिल हो रहे है । कभी कोई दो दिन का प्लास्टर लगाकर घूम लेता है। इस खेल मे इनके साथ मेडिकल बोर्ड का भी भरपूर समर्थन मिल जाता है । पर चुनाव और लोकतंत्र के नाम से कुछ सालों से जो साजिश चल रही है वह जहां घातक है, वहीं देश की जनता के साथ छलावा। लोकतंत्र को चुनाव को बाजार तंत्र का हिस्सा बना दिया गया है। 

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आजकल, कुछ सालो से सत्ता के गलियारों मे एक नाम बहुत ज्यादा चर्चित हो गया है- प्रशांत किशोर । यह बंदा आपको चुनाव जीतने के तरीके बताएगा, लोक लुभावन नारे बताएगा, फिर सामने वाले को कैसे काऊंटर किया जाए यह भी बताएगा! इसे कोई मतलब नहीं है कि सामने वाला कैसे चरित्र का है, इसका राजनीतिक सफर कैसा है । इसे अपना सामान बेचना है और सामने वाले को लेना है । कुल मिलाकर यह देश, लोकतंत्र और हम सब नागरिक इसके लिए एक विषय वस्तु है । मेरे को तो आश्चर्य तब और लगता है जब कुछ राष्ट्रीय दल उसे अपनी पार्टी में पदों से नवाजते है । वहीं यह काम करते करते यह सरकार का हिस्सा भी बन जाता है । काबीना मंत्री की हैसियत की सुविधाएं लेकर यह फिर अपने ग्राहक को उपकृत करता है कि फिर से सत्ता में कैसे आना है । हालात तो यह है कि इसके सामने जमीनी नेता भी उपेक्षित हो जाते है । उनकी सलाह कोई मायने नहीं रखती। एक इस बंदे के लिए आम कार्यकर्ता के मन में आक्रोश सा आ जाता है । टिकट के वितरण पर भी अपनी भूमिका दिखाने के चलते ये अपनी एक नई लाॅबी भी बनाते दिखता है । हाइकमान के बाद इसी का नंबर दिखने लगता है तो कार्यकर्ता और मंझोले किस्म के नेता जनप्रतिनिधियों को छोड़कर इसे ही अपना नेता मानते है ।

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इस देश की खासियत है कि यहां के लोकतंत्र के बाजार की मंडी पांचो साल सजी रहती है । हालात यह है कि एक जगह का नहीं निपटा रहता कि दूसरी जगह की आफर या दुकान खोलने के लिए बुलावा पहले से आ जाता है । पांच साल कुछ मत करो, यह बंदा है, नैय्या तो पार करा ही देगा । कौन से अपने जेब से फीस और सुविधा देनी है। एक पद बना दो, फिर यह भी बाजार के माध्यम से उसका हिस्सा बन जाता है । ” कुल मिलाकर इस बंदे को चुनाव का नैय्या पार कराने वाला धनवंतरि कह लो, इसे संजीवनी बूटी कह लो, या वैधराज सुमेध कह लो या फिर आज का शर्तिया चिकित्सक कह लो ”  ।  पर तारीफ करनी होगी, नेताओ की तारीफ करनी होगी। इस बंदे के लिए लोकतंत्र एक बाजार है, जिस पर उसका हक है। जो खरीदना चाहे, खरीद ले। बस यही तकलीफ है कि हम इनके लिए एक उपयोग की वस्तु है। 

धिक्कार है इन नेताओं को जो इनका सहारा लेते है। इतनी हिम्मत नहीं कि अपने राजनीतिक कामों से चुनाव का सामना कर सके । आपके जानकारी के लिए बता दूँ कि उक्त दुकानदार अभी अपनी दुकान को पश्चिम बंगाल मे बंद कर, पंजाब के लिए रवाना हो चुका है क्योंकि उसे पहले ही पंजाब आने का आमंत्रण मिल गया है । इसलिए अब इसकी चुनावी दुकान पंजाब मे चुनाव तक उपलब्ध रहेगी ।  

उक्त चुनावी मैनेजमेंट के इस विशेषज्ञ को इतना अपने उपर आत्मविश्वास है यह खुले आम कहता है कि सामने वाली राष्ट्रीय पार्टी दो अंको मे भी आ जाए तो बहुत है । तीन अंकों पर आने पर अपने काम से सन्यास ले लूंगा ।  बस आने वाले दिनों में पता चल जायेगा ।  वाह रे नेताओं ! शर्म महसूस नहीं होती कि लोगों को लोकतंत्र के नाम से बाजार का हिस्सा बनाकर खुले आम ठगा जा रहा है और धोखा दिया जा रहा है !! इससे अच्छा सैन्य शासन लग जाए, वो ज्यादा बेहतर है  । बस इतना ही 
लेखक:डा.चंद्रकांता रामचन्द्र वाघ-अभनपूर(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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