Positive India:Satish Chandra Mishra:
ऐसा लगता है कि नौ सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को जा रही है।
पिछले करीब एक सप्ताह से ममता बनर्जी ने उत्तरप्रदेश के विरुद्ध भयंकर विषवमन प्रारम्भ किया है। ममता बनर्जी अपनी हर सभा मे उत्तरप्रदेश को कोस रही है। बार बार यह चुनौती दे रही है कि पहले उत्तरप्रदेश को देखो, उसे संभालो फिर बंगाल की बात करो। अतः ममता बनर्जी को सच का आईना दिखाना आवश्यक हो गया है।
सबसे पहले तो ममता बनर्जी भलीभांति यह जान समझ ले कि बंगाल में उसके शासन में सरकारी संरक्षण में TMC के गुंडों द्वारा “कट मनी” और “टोलाबाजी” नाम से पूरे बंगाल में बरसों से की जा रही संगठित लूट सरीखा एक भी उदाहरण पूरे उत्तरप्रदेश में नहीं मिलेगा। उल्लेखनीय है कि यह कोई आरोप मात्र नहीं है। लोकसभा चुनाव में बंगाल में BJP को मिली जबरदस्त सफलता के पश्चात पूरे देश ने देखा था कि TMC के गुंडों से खुद ममता बनर्जी खुलेआम अपील कर रही थी कि वो लोगों से लूटा गया “कट मनी” लोगों को वापस कर दें। ममता बनर्जी की उस अपील से यह साफ हो गया था कि बंगाल में आम आदमी से बरसों से हो रही “कटमनी” नाम की व्यापक लूट की पूरी जानकारी ममता बनर्जी को थी। अर्थात “कट मनी” नाम की वह लूट सरकारी संरक्षण में ही हो रही थी। राजधानी कोलकाता से लेकर बंगाल के छोटे-छोटे गांवों कस्बों तक फैला “कट मनी” लुटेरों का सघन नेटवर्क बंगाल की गरीब जनता से हर वर्ष दसियों हजार करोड़ रुपये की लूट प्रतिवर्ष कर रहा था। लेकिन अंधेर नगरी के चौपट राजा की तरह ममता बनर्जी अपनी आंखे बंद किये हुए थी।
सत्ता संरक्षण में खुलेआम इतनी बड़ी और बर्बर लूट का ऐसा बेशर्म उदाहरण उत्तरप्रदेश तो छोड़िए, पूरे देश में नहीं मिलेगा। इसके अतिरिक्त टोलाबाजी और सिंडिकेट मनी गिरोह द्वारा सरकारी सहमति और संरक्षण के बल पर खुलेआम की जाने वाली बर्बर लूट के आतंक का जैसा कहर बंगाल की आम जनता पिछले कई बरस से भोग रही है। उसका भी कोई दूसरा उदाहरण पूरे देश में नहीं मिलेगा। इसके बावजूद ममता बनर्जी जब उत्तरप्रदेश के विरुद्ध विषवमन करती है। पहले उत्तरप्रदेश को देखने संभालने की सीख देती है तो ऐसा लगता है कि नौ सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को जा रही है।
इसी संदर्भ में अगली पोस्ट में कुछ ऐसे ठोस तथ्यों से अवगत कराऊंगा जो यह बताएंगे कि उत्तरप्रदेश की तुलना में कितनी बदतर स्थिति में है ममता बनर्जी के शासन वाला बंगाल।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-एफबी(ये लेखक के अपने विचार)
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