www.positiveindia.net.in
Horizontal Banner 1

दुनिया में मानवता की भलाई के लिए भारत का आत्मनिर्भर होना जरूरी : मोदी

Ad 1

Positive India Delhi 12 March 2021
प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने बृहस्पतिवार को कहा कि आत्मनिर्भर भारत के मूल में सिर्फ अपने लिए धन-संपत्ति और मूल्य अर्जित करना नहीं ,बल्कि मानवता की वृहद सोच और विश्व की भलाई है।
डिजिटल माध्‍यम से स्‍वामी चिदभवानंद की ई-भगवत् गीता के लोकार्पण अवसर पर अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा कि कोरोना संक्रमण काल में भारत ने दुनिया को ना सिर्फ दवाइयां मुहैया कराई बल्कि अब वह टीके भी उपलब्ध करवा रहा है।
उन्होंने कहा, आत्मनिर्भर भारत के मूल में सिर्फ अपने लिए धन-संपत्ति और मूल्य अर्जित करना नहीं है, बल्कि मानवता की सेवा है। हमारा मानना है कि आत्मनिर्भर भारत दुनिया की बेहतरी के लिए है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि पूरी दुनिया कोविड-19 की चुनौती का सामना कर रही है और इसका सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था पर भी दूरगामी प्रभाव पड़ा है। उन्होंने कहा कि ऐसी परिस्थिति में गीता के दिखाए रास्ते और अहम हो जाते हैं।
उन्होंने कहा‘पिछले दिनों जब दुनिया को दवाइयों की जरूरत पड़ी तब भारत ने इसकी पहुंच सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव प्रयास किया। हमारे वैज्ञानिकों ने कम से कम समय में टीके का इजाद किया और अब भारत दुनिया को टीके पहुंचा रहा है।
इसे आत्मनिर्भर भारत का बेहतर उदाहरण बताते हुए उन्होंने कहा कि 130 करोड़ भारतीयों ने देश को आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प ले लिया है।
इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा कि ई-बुक्स युवाओं में विशेष रूप से लोकप्रिय हो रही हैं और ई-भगवत् गीता अधिक से अधिक युवाओं को गीता के महान विचार से जोड़ेगा।
उन्होंने कहा गीता हमें सोचने पर मजबूर करती है। यह हमें सवाल करने के लिए प्रेरित करती है। यह हमें चर्चा के लिए प्रोत्साहित करती है.
युवाओं को गीता का अध्ययन करने का आह्वान करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि भगवत् गीता पूरी तरह व्यवहारिक ज्ञान पर आधारित है।
उन्होंने कहागीता की शोभा उसकी गहराई, विविधता और लचीलेपन में है। आचार्य विनोबा भावे ने गीता को माता के रूप में वर्णित किया है। महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, महाकवि सुब्रमण्यम भारती जैसे महान लोग गीता से प्रेरित थे।
इस समारोह का आयोजन स्वामी चिदभवानंद की भगवत् गीता की पांच लाख प्रतियों की बिक्री के अवसर पर किया गया था।
स्‍वामी चिदभवानंद तमिलनाडु के तिरूचिरापल्‍ली स्थित श्री रामकृष्‍ण तपोवन आश्रम के संस्‍थापक हैं।
उन्‍होंने साहित्‍य की विभ‍िन्‍न विधाओं में 186 पुस्‍तकें लिखी हैं। भगवत् गीता पर मीमांसा उनकी प्रमुख कृतियों में शामिल है।
तमिल भाषा में गीता पर उनकी टिप्पणी 1951 में और अंग्रेजी में 1965 में प्रकाशित हुई थी। इस पुस्‍तक का तेलुगू, उड़िया और जर्मन तथा जापानी भाषाओं में भी अनुवाद किया जा चुका है।

Gatiman Ad Inside News Ad
Horizontal Banner 3
Leave A Reply

Your email address will not be published.