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आख़िर राष्ट्रीय अपमान की कुछ तो क़ीमत चुकानी ही पड़ेगी इन देशद्रोहियों को

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Positive India:दयानंद पांडेय;29 जनवरी:
वाम ब्रिगेड के सारे एजेंडाधारी , लेखक , कवि , बुद्धिजीवी आदि-इत्यादि दिल्ली में किसान आंदोलन की हिंसा की पैरवी करने में पेट-पीठ , एड़ी-चोटी एक कर चुके हैं। राकेश टिकैत की लंठई और मनबढ़ई भरे आंसू में संवेदना देख रहे हैं। उस में भीग और भिगो रहे हैं। गुड है। तिरंगे का अपमान , आई टी ओ और लालक़िला में तांडव , पुलिसजनों की पिटाई और उन का घायल होना तो सब बेमानी है ही। राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेंस ने उन्हें दिशा दे दी है। इन हिप्पोक्रेटों की राय में 26 जनवरी को दिल्ली में जो भी हिंसा आदि हुई वह सब गोदी मीडिया की कारस्तानी है। खालिस्तानी , वामी सब दूध के धुले हैं। उन्हों ने कुछ किया ही नहीं। जो भी कुछ हुआ सब भाजपाइयों और सरकार ने किया-करवाया। पूछ रहे हैं कि लालकिले का फाटक क्यों खुला था। गुड है यह नैरेटिव भी।

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दिल्ली में 26 जनवरी की हिंसा को शांत करने के लिए दिल्ली पुलिस द्वारा गोली न चलाना इन लोगों को बहुत खल गया है। अभी भी एफ़ आई आर के बावजूद जबरिया धर-पकड़ न करना उन्हें खल रहा है। राकेश टिकैत भी कल रात कह रहा था , गोली चलाओ। गरज यह कि जैसे भी हो गोली चलवाने में ही वह अपनी विजय देखना चाहते हैं। अब इन विद्वान शिरोमणियों को कौन बताए कि जिस संविधान को यह लोग दिन-रात खतरे में बताते फिरते हैं , उसी संविधान और उस में निहित क़ानून से ही यह अराजक लोग काबू में आ जाएंगे। क़ानून के राज में , संविधान के राज में गोली चलाने की ज़रूरत भी क्या है। आप अपनी अभिव्यक्ति की आज़ादी दिखाइए। सहिष्णुता भी। संविधान और क़ानून को अपना काम करने दीजिए। इतना बेसब्र भी मत होइए। अभी तो तेल देखिए और तेल की धार देखिए। बस बजट सत्र बीतने दीजिए। सर्जिकल स्ट्राइक या बालाकोट जैसी किसी एयर स्ट्राइक जैसे किसी बड़े फ़ैसले और कार्रवाई की प्रतीक्षा कीजिए। आख़िर राष्ट्रीय अपमान की कुछ तो क़ीमत चुकानी ही पड़ेगी इन देशद्रोहियों को। देशद्रोह की धारा एफ़ आई आर में वैसे तो नहीं दर्ज की गई है। सब्र का फल मीठा होता है , यह जुमला भी सुना तो होगा ही। सो फिकर नॉट , जस्ट चिल !
साभार:दयानंद पांडेय-एफबी(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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