www.positiveindia.net.in
Horizontal Banner 1

जड़ी-बुटी उत्पादक किसानों के हितों के विपरीत काम कर रहा आयुष मंत्रालय

आयुष मंत्रालय ने आयुर्वेदिक कंपनियों के संगठनों से किया करार, किसानों को किया दरकिनार।

Ad 1

Positive India:3 October 2020:
केंद्र सरकार द्वारा कृषि सुधार के लिए पारित किये गये तीनों विधेयकों ने किसानों के मन में कुछ प्रश्न, कुछ आशंकाएं खड़ी की हुई है. इसी बीच एक सूचना और आई कि केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने हर्बल फार्मिंग को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ आयुर्वेदिक व्यवसायिक संगठनों के साथ करार किया है.दरअसल वैद्य राजेश कोटेचा, सचिव आयुष मंत्रालय की उपस्थिति में आयुर्वेदिक ड्रग निर्माता संघ (ADMA), मुंबई; आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माता एसोसिएशन (AMAM), नई दिल्ली; भारत के आयुर्वेदिक औषध निर्माता संगठन (AMMOI), त्रिशूर; हर्बल एंड न्यूट्रास्युटिकल मैन्युफैक्चरर्स ऑफ इंडिया (AHNMI), मुंबई; फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज (FICCI), नई दिल्ली और भारतीय उद्योग परिसंघ (CII), नई दिल्ली के साथ एम ओ यू पर हस्ताक्षर किया गया।

Gatiman Ad Inside News Ad

अखिल भारतीय किसान महासंघ (आइफा) मानता है कि यह जड़ी-बुटी उगाने वाले किसानों के लिए हतप्रभ करने वाली स्थिति है. आय़ुष मंत्रालय द्वारा उठाये गये कदम का आइफा ने विरोध करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय आयुष मंत्री, स्वास्थ्य मंत्री को पत्र लिख कर अपना कड़ा विरोध जताया है तथा जड़ी-बुटी उत्पादक किसानों के हितों की रक्षा के उपाय किये जाने की मांग की है।

Naryana Health Ad

अखिल भारतीय किसान महासंघ (आइफा) के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि पहला सवाल तो यही उठता है कि क्या ये आयुर्वेदिक व्यवसायिक संगठन जड़ी-बुटियों की खेती करते हैं? खेती तो किसान करता है, जड़ी-बुटियों की आपूर्तिकर्ता किसान है . लेकिन सरकार या मंत्रालय किसानों से करार करने के पहले ही इन आयुर्वेदिक व्यवसायिक संगठनों से करार कर रही है. यह समझ के परे हैं. उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने घोषित आर्थिक पैकेज में देश में 10 लाख हेक्टेयर अर्थात 25 लाख एकड़ भूमि पर हर्बल खेती को प्रोत्साहित करने के लिए चार हजार करोड़ रुपये आवंटन की घोषणा की. निःसंदेह केंद्र सरकार की हर्बल फार्मिंग के प्रति प्रतिबद्धता को देख जड़ी-बुटियों के उत्पादक किसानों में खुशी की लहर दौड़ी. लेकिन आय़ुष मंत्रालय के उपरोक्त उल्लेखित करार ने किसानों को पुनः निराश किया है।

डॉ त्रिपाठी ने कहा कि भारत में जड़ी-बुटियों का मुख्य स्रोत वन रहे हैं, जो कि तेजी से सिकुड़ रहे हैं , वनौषधियों की कई प्रजातियां जंगलों से अंधाधुंध दोहन के कारण विलुप्त हो गई हैं. इसलिए अब प्रमुख रूप से किसानों द्वारा उत्पादित जड़ी-बुटी की खेती को प्रोत्साहन देना ही एकमात्र विकल्प बचता है. इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार हर्बल फार्मिंग को प्रोत्साहन देने जा रही है. लेकिन जिस तरह के क्रिया कलाप दृष्टिगोचर हो रहे हैं, वह खतरें की घंटी बजा रही है. वन औषधियों की खेती में किसान की मेहनत तथा लागत दोनों लगती है जबकि जंगलों से दोहन केवल एकत्रीकरण की मजदूरी ही देनी होती है, इसलिए तमाम आयुर्वेदिक व्यवसायिक संगठन, जिनसे सरकार करार कर रही है, निश्चित रूप से वे सस्ते मूल्य पर वनौषधियों की प्राप्ति हेतु जंगलों का ही दोहन कर जड़ी-बुटियां प्राप्त करने को ही प्राथमिकता देंगे, इससे ना केवल जंगल खत्म होंगे बल्कि जड़ी-बुटियों की कई प्रजातियां अंधाधुंध दोहन की वजह से विलुप्त हो जाएंगी, वर्तमान में 33 प्रजातियां विलुप्तता की कगार पर आ गई है।

उन्होंने दूसरा महत्वपूर्ण सवाल यह उठाया कि अगर ये कंपनियां किसानों से जड़ी-बुटियों की खरीद करती भी हैं तो उन जड़ी-बुटियों की कीमत का आधार क्या होगा? आम फसलों के लिए तो सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किये गये हैं लेकिन जड़ी-बुटियों के मामले में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है. ऐसी स्थिति में सरकार द्वारा हर्बल फार्मिंग के प्रोत्साहन के आश्वासन भी हर्बल किसानों को आशांवित नहीं कर रहे, इसके बाद उपरोक्त उल्लेखित करार व्यापक संदेह व आशंकाओं को जन्म दे रहे हैं.यह भी जांच का विषय हो सकता है कि वर्तमान आयुष तथा राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड आखिर क्यों हर्बल किसानों की कीमत पर आयुर्वेदिक कंपनियों के हितों की रक्षा के लिए इतने तत्पर और प्रतिबद्ध हैं।

विभिन्न जड़ी-बुटी की खेती को लेकर मेडिसिनल प्लांट बोर्ड द्वारा जो लागत के प्रारूप प्रतिपादित किये गये है, वह जमीनी हकीकत से कोसों दूर हैं. किसानों की लागत और मुनाफे के बीच का अंतर सरकार द्वारा जो दर्शाया जाता है, वह आकर्षक तो लगता है कि लेकिन वस्तुस्थिति बिल्कुल ऐसी नहीं है. अतः इसका पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है.

Horizontal Banner 3
Leave A Reply

Your email address will not be published.