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कैसे जेहादी सलीम जावेद की जोड़ी ने जनता की सोच प्रभावित करने का प्रयोग किया

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Positive India;26 September 2020:
हिन्दू विरोध के चरमपंथी वर्षों तक मुख्य मार्गी मीडिया व मनोरंजन पटल पर आधिपत्य कर अपने बौद्धिक स्खलन से कैसे कैसे कुकर्म किए ये सोच कर मेरी तरह आप भी स्तब्ध रह जाएंगे।

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जावेद अख्तर ने 1970 से 1982 तक लेखक सलीम के साथ टीम बनाकर 24 बॉलीवुड फिल्मों की पटकथाएं लिखीं। इनमें से ज्यादातर फिल्में अंडरवर्ल्ड पर अपराध आधारित कहानियां थीं।

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इस अवधि के दौरान, बॉम्बे में पांच खूंखार अपराधी थे – हाजी मस्तान, यूसुफ पटेल, करीम लाला, वरदराजन मुदलियार और दाऊद इब्राहिम। इनमें से चार मुसलमान थे। पुलिस रिकॉर्ड से पता चलता है कि मुंबई में 80 प्रतिशत अपराधी मुसलमान थे।

लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि बॉम्बे में उसी समय के दौरान, जावेद अख्तर और सलीम जावेद ने 24 फिल्मों की कहानी की पटकथा लिखी थी, उनकी पटकथाओं का खलनायक कभी मुसलमान नहीं था।

यह जेहादी जावेद अख्तर के लोकप्रिय फिल्मों के शक्तिशाली माध्यम के माध्यम से जनता की सोच को प्रभावित करने के अचूक पूर्वाग्रह को दर्शाता है।

हम सब जावेद अख्तर द्वारा लिखित फिल्म की एक कहानी से परिचित ही हैं। फिल्म का नायक एक हिंदू है, एक नास्तिक जो हिंदू धर्म से इतनी नफरत करता है कि वह मंदिर की सीढ़ियों पर भी पैर नहीं रखता और भगवान के प्रसाद को भी नहीं छूता है। लेकिन वही नास्तिक हिंदू नायक, उसकी बांह पर संख्या 786 का बिल्ला जो एक इस्लामी धार्मिक प्रतीक के रूप में है पर वह इतनी गहराई से विश्वास करता है वही बिल्ला जब उसे गोली लगती है, तो उसकी जान बचा लेता है।

1983 से 2006 तक, जावेद अख्तर ने 14 और फिल्मों की पटकथा लिखी, लेकिन उन 14 फिल्मों में भी, एक भी मुस्लिम चरित्र को नकारात्मक रूप से नहीं दिखाया गया। यानी 1970 से 2006 तक, कुल 38 फिल्मों में, जावेद अख्तर की कहानियों में एक भी मुस्लिम चरित्र को खलनायक के रूप में नहीं दिखाया गया था। ध्यान रहे,उस समय लगभग 60% फिल्में शुद्ध अपराध कथाओं पर आधारित थीं।

उन दिनों मुस्लिम गुंडों, तस्करों, हत्यारों, आतंकवादियों का अपराध मुंबई में कहर ढा रहा था। जिसके बारे में पूरा देश जानता है। लेकिन जावेद जेहादी अख्तर द्वारा लिखी गई हर कहानी का खलनायक हमेशा हिंदू ही होता था। यह एक संयोग नहीं हो सकता।

यह उल्लेख करना आवश्यक है कि यह जावेद जेहादी अख्तर पाकिस्तानी मुशायरा सेमिनारों और सम्मेलनों के बहाने कई दशकों से पाकिस्तान की यात्राएं करता रहा है। लेकिन उन्होंने पाकिस्तानी मुस्लिम गुंडों द्वारा पाकिस्तान में हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी या बौद्ध परिवारों पर किए गए हत्या, लूट और बलात्कार के राक्षसी कहर के खिलाफ एक शब्द भी नहीं कहा। पाकिस्तान में गैर-मुसलमानों की ऐसी दर्दनाक स्थितियाँ उनकी किसी भी कहानी या ग़ज़ल पर कभी नहीं छाईं थीं।

लेकिन यह वही जावेद जेहादी अख्तर है जिसने सीएए का विरोध किया और पाकिस्तानी मुस्लिम गुंडों व रोहंगिया जेहादियों को भारत की नागरिकता देने का दबाव डाल रहा था।

तीन, चार दशक पहले, फिल्म जिहाद की कमान वामपंथियों के मुखौटे में वैचारिक रूप से चालाक ठगों और धोखाधड़ी के गिरोह को सौंप दी गई थी। 7-8 साल पहले तक, इन वैचारिक रूप से चालाक ठगों के गिरोह और वामपंथ के मुखौटे के साथ धोखाधड़ी ने देश के वैचारिक धरातल पर एक तानाशाह की तरह शासन किया।

सत्तारूढ़ लालची कांग्रेस इस वामपंथी वैचारिक कचरा गठरी को अपनी पीठ और खोपड़ी पर एक शोपीस की तरह ढोती रही।

लेकिन समय ने करवट ली और 7-8 साल पहले, इस देश के आम आदमी को सोशल मीडिया का मंच मिला और उस मंच से आम आदमी द्वारा सच कहना शुरू हुआ। सत्य की इस दहाड़ के कारण, वामपंथी विचारधाराएं बुरी तरह से ढहने लगीं। शैतानों के स्थान पर कब्जा करने वाले सच के भगवान प्रकट हो गए व वामपंथी शैतानों की मूर्तियाँ जो सीधी खड़ी थीं, उन्हें उखाड़ना शुरू कर दिए।

वैईसे तो बॉलीवुड जिहाद का यह सिलसिला अब भी जारी है, लेकिन अब इसके खिलाफ आम आदमी की लड़ाई भी शुरू हो चुकी है। यह सब एक एक सामान्य व्यक्ति द्वारा ठोस सबूतों और तथ्यों के साथ बताई जा रही सच्चाइयों की एक कड़ी भर है।

प्रधानमंत्री मोदी जी यूँ ही नही कहते, यह सब संयोग नहीं बल्कि समय समय पर किये जा रहे प्रयोग हैं। अब आप समझ रहे होंगे कि मोदी जी डिजिटल मीडिया को क्यों प्रोत्साहित करते रहते हैं।

साभार:काशिवाले शरद बाबू वाया सुजीत तिवारी-एफबी(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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