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प्रवासी मजदूरों की मजबूरी पर सियासत करती राजनीतिक पार्टियां

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
प्रवासी मजदूरो में अपने घरों में जाने के लिए आपा धापी मची हुई है । पर यह स्व:सफूरत नही है । इसे बड़ी चतुराई से राजनीतिक षडयंत्र के तहत अंजाम दिया गया है । कोरोना जैसे महामारी मे राजनीतिक दलों की जो भूमिका रहनी चाहिए दुर्भाग्य से वो कहीं भी परिलक्षित नजर नही आ रही है । इस बीमारी में भी अपने राजनीतिक फायदे को पहले देखा जा रहा है । इन्हे इस बात की भी चिंता नही है कि महामारी के फैलने के बाद वो भी इसके जद मे आ सकते है।

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आज पूरे चैनल सिर्फ मजदूरों के तकलीफो को तन मन से दिखाने मे लगे हुये हैं । अगर देखा जाए तो मजदूर मे भय व्यापत कराने मे देश की राजधानी से इसकी शुरुआत हुई है । इसे बड़े शातिराना ढंग से अंजाम दिया गया । पहले अफवाहें फैलाई गई कि बार्डर पर राज्य मजदूरों को लेने के लिए बस भेज रहे है। तो घर जाने के लिए लोगों में अफरा तफरी मच गई । हद तो यह हो गई इन राजनेताओं ने बार्डर तक जाने के लिए बस भी उपलबध करा दी । जबकि उक्त प्रदेश को कोई सूचना ही नही थी । इस तरह की अफवाहों को फैलाकर मजदूरो को अपने प्रदेश में पलायन कराने की सीधी सी रणनीति थी, जिससे इन मजदूरों का बोझ प्रदेश पर न पड़े। उल्लेखनीय है कि सरकार इसके पहले इन मजदूरों के लिये बडी बडी बातें की थी । बाद मे आनन फानन में मजदूरों को ले जाने की व्यवस्था की । यही हाल बाकी प्रदेशों का भी है ।

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मुंबई में तो एक नेता ने बाकायदा दूसरे राज्य के अप्रवासी लेबर को वाटसअप के माध्यम से बांदरा रेलवे स्टेशन पर ही एकत्रित कर लिया था । इन मजदूरों को बाद में पुलिस ने लाठीचार्ज कर तितर बितर कर दिया । कुल मिलाकर लाॅकडाउन में कार्यवाही भी धर्म देखकर दिखाई देने लगी ।

जब केन्द्र सरकार रेलवे आदि माध्यम से उनके गंतव्य तक पहुंचाने की बात की तो राज्य सरकार का दायित्व बनता था कि उन मजदूरों का खयाल रखने की व्यवस्था करवाते । मजदूरो के पलायन की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है । इन सरकारों ने अपने हाथ खींच लिये, जिसके कारण भय के माहौल मे मजदूरों ने जैसी व्यवस्था बनी वैसे निकल पड़े । इसी कारण रेलवे पटरियों पर सोने के कारण रेल से कटने से दुखद मौत हो गई । इसी तरह रोड एक्सिडेंट में भी मजदूरों की मौत हो गई है । यह दुर्भाग्य जनक है।

ऐसे समय में पूरे देश वासियों को एक होने की आवश्यकता थी। परंतु राजनीतिक पार्टियों ने अपनी चाल चल दी। हो गई इस देश की जानी पहचाने राजनीतिक खेल की शुरुआत । आंखों मे आंसूओ का सैलाब लेकर मुआवजे का तडका का खेल चालूकर, इस विपदा की घड़ी में सरकार की अक्षमता का यह सुनहरा मौका कौन छोड़ने से रहेगा । कुल मिलाकर इस महामारी मे कोई भी नेता कोरोना को लेकर चिंतित नजर नही आ रहे हैं । अब तो स्थिति ऐसी हो गई कि इधर से उधर ले जाने में लाॅकडाउन का कितना पालन होगा, यह कहना मुश्किल है ।

कुल मिलाकर, इससे कितना राजनीतिक फायदा होगा, इसी पर सबका ध्यान है । मजदूर तो इनके लिए सिर्फ राजनीतिक टूल्स है । इस तरह के हादसो मे संवेदनाये पैदाकर ज्यादा से ज्यादा फायदा ही एक मकसद है । अगर ये राजनीतिक मतभेद नही रहता, तो यह एक स्वर में बात करते । और यह स्थिति लाने से बचते । पर विपदाओं में कभी भी देश ने ऐसा होते देखा नही है । आज आवश्यकता है राजनीतिक मतभेद भुलाकर एक हो । तभी देश इस महामारी से लड़ पायेगा । बस इतना ही।

लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ-अभनपूर ।

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