Positive India;Dr.Chandrakant Wagh:
आज मै क्षुब्ध हू कि कैसे लिखू, क्या लिखू ? कुल मिलाकर कोरोना को देखते हुए लग रहा है कि सिर्फ राजनीति हो रही हैं । जिस तरह शराब पर छूट दी गई हैं उससे तो लोग हैरान हैं । ऐसे मे आम लोगों में जो कोरोना से लड़ने में एक प्रतिबद्धता थी, वो खत्म होते जा रही हैं । अभी तक यह लग रहा था कि सरकार भी क्या कर सकती है । इसलिए लोग तन मन धन से अपना कर्तव्य निभा रहे थे । जिसको जो महसूस हुआ, उसने वो कर लिया । पर अब लोग अपने को ठगा महसूस कर रहे है ।
जब समाचार पत्रों में नेताओं के बारे मे यह आता हैं कि बोर होने के कारण तफरीह के लिए निकल गए हैं, तो काफी तकलीफ होती है । वहीं इस समय शराब की दुकानें खुलने से व्यापारियो में काफी रोष भी पनप रहा है । हालात तो यह है हफ्ते में तीन दिन, वो भी दो बजे तक, इसके बाद कभी देर हो जाये तो प्रशासनिक सख्ती का सामना करना पड़ सकता है । व्यवसायियों में इस बात की चिंता है कि नौकर की तनख्वाह, बैंक के लोन और प्रायवहेट देनदारी कैसे निपटाई जाये यह भी एक चिंता का विषय है । आज वाटसअप आदि से यह बात आम हो गई है कि शराब से कोरोना नही फैलता, पर दूकानो से फैलता है। यह प्रश्न किये जा रहे हैं । आज प्रशासनिक अधिकारियों से यह बात पूछी जा रही हैं । पर प्रशासनिक अधिकारियों के पास कोई जवाब नहीं रहता । इस तरह के अव्यावहारिक निर्णय से लोगों में गुस्सा आना लाजिमी है ।
दुर्भाग्य से हमारे यहां तो, आज की सरकार में जो पार्टी हैं, उसने शराबबंदी को घोषणापत्र में जगह दी थी । पर सत्ता में आने के बाद भूल गये । जो लोग इतने दिनों तक बगैर नशे के रह रहे थे, भले ही वो कारण लाॅकडाउन का कारण क्यो न रहा हो, पर लोगों में बगैर शराब के रहने की एक आदत सी पड़ गयी थी । इस दरम्यान दारू के न मिलने से कोई मौत भी नही हुई । ऐसा कर हम एक नशाखोरी मुक्त राज्य बन सकते थे । शराबबन्दी के आर्थिक और स्वास्थय के दृष्टिकोण से फायदे कौन नही जानता? लगता है सरकार ने शराबबंदी का एक बेहतरीन मौका हाथ से गंवा दिया।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)