इरफान खान साहब, फिर मिलेंगे, कहीं किसी रोज, किसी मोड़ पर
Tribute to Irfan Khan on his untimely death.
Positive India:Gajendra Sahu;29 April 2020:
” ठाएँ ,ठाएँ” (गोलियों की अवाज)
‘पकड़ो उसे, पकड़ो साले को’ अनतत: पकड़ के कुछ लोगो ने रणविजय को खुब मारा ,,,
“मार दो सालो, हमको आज ही मार दो , कन्ही जिन्दा छोड़ दिए तो हम मारने मे देर ना करेंगे,,, भगवान कसम ” रणविजय की मार खाते हुए प्रतिक्रिया!
अचानक दूसरी ओर से तेज अवाज आई ” रुको बे , हम आ गए है ,, गौरी शंकर पांडे तुहरे बाप ”
जमीन पर पड़े अधमरे हालत मे रणविजय से कहा ” अभी जान जाने वाली थी तुम्हारी, हमने कहा रुको दो चार दिन रुक कर जाना,,, धन्यवाद दो हमारा ”
काश,,,, आज फिर कोई गौरी शंकर पांडे आकर रणविजय सिंह की जान बचा ले और रोक ले। तो मै धन्यवाद दूँगा । पर बहुत हृदय विदारक बात है कि वो रील लाइफ थी और ये रियल लाइफ है। आज रणविजय सिंह नही उठेगा।
ये फिल्म हासिल के एक दृश्य का नमूना था। फिल्म तो इससे कही लाख गुना बेहतर है। इस फिल्म के लिए इरफ़ान खान(Irfan Khan) को बेस्ट विलन(Best Villain) का अवार्ड मिला और मुझे मेरा एक चहेता कलाकार।
उम्र का सही अंदाजा नही पर फिल्म देखने के बाद उस उम्र मे न समझ आने वाली छात्र राजनीति मे रुचि बढ़ गई । और छात्र राजनीति से जुड़ गया। ये बात अलग है कि छात्र राजनीति में जो मुकाम चाहता था, वो नहीं मिला। खैर कोई बात नहीं , इसका मलाल कभी न रहा है और ना रहेगा ।
कुछ समय बाद यह फिल्म मैं और मेरे बचपन के मित्र (मोंटी) ने साथ में देखी। यह वह मित्र है, जिससे बचपन मे लड़ाई किये बिना कोई दिन गुजरा हो याद नहीं ।
मोंटी को फिल्म बहुत पसंद आई और साथ ही पसंद आ गए हमारे गौरी शंकर पांडे भैया और हम तो रणविजय सिंह के प्रशंसक थे ही । इस फिल्म को देखने के बाद से हम एक दूसरे को रणविजय (मुझे) और गौरी शंकर पांडे (उसे) कहकर ही बुलाया करते थे ।
इत्तेफाकन छात्र राजनीति में मित्र को भी रुचि हुई। वह तेजी से इस क्षेत्र में काम करने के कारण आगे बढ़ा। और 2016 छात्रसंघ चुनाव में दुर्गा
महाविद्यालय का छात्रसंघ अध्यक्ष निर्वाचित हुआ ।
जीत के एक हफ्ते बाद वह मिठाई लेकर घर आया उसके आते ही बोल थे “कहां हो बे रणविजय सिंह हम है तुहरे बाप गौरी शंकर पांडे कालेज अध्यक्ष का चुनाव जीत कर आए हैं ”
और फिर मैने भी झट से उसे जवाब दिया ” हम क्या डरते हैं, क्या बे तुमसे, गोरिल्ला हैं, गोरिल्ला वार किया जाएगा तुमपे, गोरिल्ला जानते हो कि नई बे?”
इस फिल्म ने हम दोनों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। शायद यही कारण है कि हम आज भी एक दूसरे को इसी नाम से बुलाते हैं । और इसका पुरा श्रेय इरफान खान(Irfan Khan) और आशुतोष राणा जी की बेहतरीन अदाकारी को जाता है ।
आज इरफान खान साहब के अचानक जाने की खबर मिली। आंख मे आंसू डबडबा गए और कंठ भर आया। आप जितने अच्छे एक्टर थे उतने ही नेक दिल इंसान भी थे । आपकी कमी हमेशा खलेगी , और इस कमी को कोई नही भर पाएगा । आज फिल्म जगत ने अपना ध्रुव तारा खो दिया, जो लाखो सितारो के बीच अपनी अलग ही चमक रखता था। कुछ लोग किरदार को निभाते है, पर आप किरदार को जीते थे ।
सच में कुछ अलग बात थी आपमे,,,,
अब तो आप केवल यादों मे है इरफान साहब , पर यकिन है हम फिर मिलेंगे, कही किसी रोज , किसी मोड़ पर । तब तक के लिए बाय, अलविदा, शब्बाखैर , रबराखा,,,।।
लेखक:गजेन्द्र सासू उर्फ विक्की।