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कोरोना लॉकडाउन सामाजिक समभाव उन्नयन का स्वरूप है

Corona Lockdown Analysis & Its Positive Impact.

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Salute to Corona Warriors by Sudarsan Pattnaik
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Positive India:Prayagraj;17 April:
वैश्विक संकटकाल में कोरोना वायरस के संक्रमण से समूचे विश्व के साथ ही भारत भी अछूता नहीं है | उन्नत वैज्ञानिक और चिकित्सकीय तकनीक के बाद भी जहां अमेरिका जैसे विकसित देश इस वायरस से जूझ रहे हैं ,लेकिन अपने देशवासियों की रक्षा करने में खुद को कहीं न कहीं असमर्थ पा रहे हैं। वहीं भारत जैसा विकासशील देश बहुत हद तक इस वायरस के फैलाव को रोकने में सक्षम सिद्ध हो रहा है ।

Salute to Doctors who are fighting Corona:by Sudarsan Pattnaik

भारतवासियों के लिए यह सुखद समाचार हो सकता है कि देश के 25 जिलों में बीते 14 दिनों से कोरोना वायरस के संक्रमण का कोई नया मामला सामने नहीं आया । हमारे लिए यह संतोषजनक बात हो सकती है कि संक्रमण के नए मामलों की रफ्तार थोड़ी धीमी पड़ गई है, लेकिन खतरा अभी पूरी तरह टला नहीं है, इसलिए माननीय प्रधानमंत्री जी ने लॉकडाउन की अवधि में दो हफ्तों की बढ़ोतरी करने का निर्णय लिया है । लॉकडाउन से सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक,धार्मिक सभी स्तरों पर लोग प्रभावित हुए हैं।

कुछ बुद्धिजीवियों और विपक्षियों का का मानना है कि प्रधानमंत्री का लॉकडाउन का फैसला गलत है, मनमानी है, तानाशाही है। लेकिन, आम जनता की राय इससे अलग है । आमजन जानता है कि लोगों को घरों में कैद करके माननीय प्रधानमंत्री जी को मजा नहीं आ रहा बल्कि यह उनकी अपनी जनता के प्रति निष्ठा और चिंता है, जिसके कारण उन्हें यह कठोर निर्णय लेना पड़ा । एक मां भी अपने बच्चे और घर को बाहरी बीमारियों से बचाने के लिए तमाम तरह के उपाय करती है।

सामाजिक कार्यकर्ता डॉ शांति चौधरी मानती हैं कि “लॉकडाउन से लोगों की मानसिकता में बदलाव आया है । ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना का विकास हुआ है। समाज के संपन्न लोग बिना किसी सरकारी या सामाजिक संस्था की सहायता के तथा बिना किसी निजी स्वार्थ के व्यक्तिगत स्तर पर जरूरतमंदों तक खाना और अन्य सुविधाएं पहुंचा रहे हैं। एक तरह से लॉकडाउन की अवधि सामाजिक समभाव उन्नयन के रूप में दिखाई दे रही है ।”

लॉकडाउन से देश की व्यापारिक और आर्थिक स्थिति पर पड़ने वाले प्रभाव पर विचार करते हुए विख्यात बिजनेसमैन अरूण कुमार जैन कहते हैं कि “भले ही देश की अर्थव्यवस्था पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा, लेकिन एक सौ तैंतीस करोड़ लोगों की सुरक्षा के लिए यह फैसला उचित और प्रशंसनीय है, जो लोग इस फैसले की निंदा कर रहे हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि हमारी सरकार का विजन है भारत को विश्व गुरु के रूप में स्थापित करना और एेसे में इस मेडिको बायोलॉजिकल अटैक के कारण कहीं ना कहीं वह विजन प्रभावित हुआ है, जिसका दुख प्रशासन को भी है। बतौर बिजनेसमैन कामकाज बंद होने के कारण चिंतित मैं भी हूं । लेकिन इस बात से संतुष्ट भी हूं कि मेरे सभी सहयोगी अपने घरों में स्वस्थ और सुरक्षित हैं और स्थिति सामान्य होने पर वह फिर से काम पर लौट आयेंगे ।”

लॉकडाउन की बढ़ी हुई अवधि के दौरान लोगों से और अधिक सतर्कता बरतने को कहा गया
है । साफ-सफाई के साथ ही सरकार ने फेस मास्क पहनना जरूरी कर दिया है । सभी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाई जा रही हैं । जिससे कोविड-19(COVID-19) के बढ़ते मामलों को रोका जा सके । लेकिन, बीएचयू के चिकित्सा विभाग में कार्यरत प्रोफेसर डॉक्टर पवन दूबे का मानना है कि “शहरी इलाकों के साथ-साथ दूर-दराज के पिछड़े क्षेत्रों में सैनिटाइजेशन जैसी स्वास्थ्य सुविधाओं का पूरा लाभ तभी मिल सकता है , जब वहां के स्वास्थ्य केंद्र सुविधा संपन्न हों । कई ग्रामीण क्षेत्रों के स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंचने के लिए सड़क तो है, लेकिन वहां डॉक्टर और नर्स नियुक्त ही नहीं है । ऐसे में किसी भी स्वास्थ्य सुविधा का पूरा लाभ उस क्षेत्र को नहीं मिल सकता । अतः कोरोना(Corona) को हराने के लिए यह जरूरी है कि शहरों के साथ-साथ पिछड़े और ग्रामीण क्षेत्रों का भी ध्यान रखा जाए ।”

यह सत्य है कि कोरोना वायरस(Coronavirus) ने समूचे विश्व को हिला कर रख दिया है ; जिसका प्रभाव वैश्विक अर्थव्यवस्था पर, सामाजिक, राजनीतिक और शैक्षिक व्यवस्था पर भी पड़ा है । भारत भी इससे अछूता नहीं है । सुरक्षा के मद्देनजर यहां भी सभी संस्थानों, व्यापारिक मंडलों, सार्वजनिक स्थानों के साथ-साथ स्कूल कॉलेजों को भी बंद करा दिया गया । कई प्रतियोगी परीक्षाओं के साथ-साथ बोर्ड और कॉलेज की सेमेस्टर परीक्षाएं स्थगित कर दी गईं। अप्रैल माह में भी शैक्षिक कार्य प्रारंभ नहीं हो सका है। इससे छात्रों के भविष्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव के संदर्भ में सीएमपी डिग्री कॉलेज में कार्यरत डॉ प्रभात अग्रवाल कहते हैं कि “नि:संदेह लॉकडाउन से पाठ्यक्रम, परीक्षा-व्यवस्था, कक्षा-संचालन आदि प्रभावित हुआ है, लेकिन यह प्रभाव स्थाई नहीं है, क्योंकि तकनीकी रूप से उन्नत होने के कारण अध्यापक और छात्र घर बैठे अध्ययन-अध्यापन का कार्य सुचारू रूप से कर रहे हैं। अतः शिक्षा क्षेत्र में कोई विशेष हानि नहीं होगी ।”

सीमित स्वास्थ्य सुविधाओं और साधनों के कारण सुरक्षा के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लॉकडाउन की अवधि में बढ़ोतरी करनी पड़ी, जिसके कारण लोगों को और दो हफ्तों तक अपने घरों में कैद रहना पड़ेगा । विपक्ष भले ही मोदी जी के फैसले को गलत ठहराए, लेकिन भारतीय जनता जानती है कि प्रधानमंत्री जी का यह फैसला जनहित के लिए है ।
गृहिणी दिव्या ठाकुर कहती हैं कि “लॉकडाउन के कारण सभी घर पर रहते हैं, तो फरमाइशें भी ज्यादा होती हैं लेकिन घर में एक खुशनुमा माहौल भी बना रहता है । बाहर के खाने के बजाय अब लोगों को घर के खाने में भी स्वाद नजर आने लगा है और गृहिणी वास्तविक अर्थों में देवी अन्नपूर्णा लगने लगी है ।”

इसी संदर्भ में मनोवैज्ञानिक डॉक्टर प्रेरणा चतुर्वेदी कहती हैं कि “ऐसे आपदाकाल में लॉकडाउन का फैसला बिल्कुल सही है, क्योंकि इससे अफवाहें नहीं फैल पाई और साथ ही लोगों को अपनी रोजमर्रा की तनावग्रस्त भागदौड़ भरी जिंदगी में कुछ फुर्सत के पल मिल गए । अन्यथा कई बार ऐसी वैश्विक आपदा के बाद आपदा के भय से अवसाद और निराशा से घिरे मानसिक रोगियों की लंबी फेहरिस्त देखी गई है । लॉकडाउन(Lockdown) के कारण लोग अपने परिवारजनों के साथ बिना किसी भय और आशंका के स्वस्थ और खुशनुमा समय बिता रहे हैं, जो भविष्य के लिए एक आशावादी दृष्टिकोण विकसित करता है।

आम जनमानस की राय के हिसाब से लॉकडाउन की अवधि गतिरोध नहीं बल्कि एक ऐसा पड़ाव है, जहां रुक कर भारत अपनी योजनाओं का मूल्यांकन कर भविष्य की ओर आत्मविश्वास भरे कदम उठा सकता है।

लेखक:विनीत दूबे-एडवोकेट ,इलाहाबाद हाईकोर्ट।

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