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देश बंदी में देश के किसान: समस्याएं और समाधान

Problems and solutions of farmers during Lockdown.

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Positive India:Raipur:
कल सुबह हमारे शहर कोंडागांव छत्तीसगढ़ में लाक- डाउन (जिसे मैं हिंदी में देशबंदी कहता हूं) तोड़ने के अपराध में नगरपालिका ने पहली कानूनी कार्यवाही करते हुए एक दुकानदार पर ₹ दो हजार का जुर्माना किया गया, बकायदा रसीद भी काटी गई। हम सभी को लगा कि यह अच्छी और जरूरी कार्यवाही थी, लोगों ने इस कार्यवाही की तारीफ भी की। सुनने में यह घटना बेहद सामान्य लग सकती है, पर अगर संपूर्ण देश की कृषि के संदर्भ में महाराजा इसके निहितार्थ देखे जाएं, तो यह घटना सामान्य नहीं है।

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यह दुकान जिस पर जुर्माने की कार्यवाही की गई दरअसल एक छोटा सा किसान-केंद्र था, यानी की खाद, बीज, दवाई ,कृषि यंत्रों की छोटी सी दुकान, जहां कल तड़के सुबह, पास के गांव के कुछ किसान खाद-दवाई, बीज आदि लेने आए थे, निश्चित रूप से यह किसान दुकान के पुराने ग्राहक तथा परिचित रहे होंगे और उन किसानों के अनुरोध पर ही इतनी सुबह दुकानदार ने दुकान खोलकर उन्हें बीज, खाद, दवाई देने का जोखिम उठाया होगा।

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अब आते हैं हम माननीय प्रधानमंत्री जी की इक्कीस दिवसीय लाक-आउट की घोषणा पर; इस संदर्भ में सबसे पहले तो अब यह कहना चाहेंगे कि हम प्रधानमंत्री जी, मुख्यमंत्री जी, केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार की हर घोषणा का न केवल समर्थन करते हैं, बल्कि उनका शत् प्रतिशत पालन भी कर रहे हैं, तथा आगे भी निश्चित रूप से करेंगे। किंतु हमारा यह मानना है कि इस लाक-आऊट के संदर्भ में निश्चित रूप से कुछ ऐसे महत्वपूर्ण बिंदु हैं,, देशहित में जिन पर ध्यान दिया जाना बेहद जरूरी है।
मुझे नहीं पता यह हमारी बातें माननीय प्रधानमंत्री #PMONarendraModi, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी अथवा संबंधित उच्चाधिकारियों तक तक पहुंच पाएंगी भी या नहीं।

मुझे यह भी नहीं पता कि मेरी बातें, मेरी इस पोस्ट से सीधे संबंधित देश के उन करोड़ों किसान भाइयों तक पहुंच पाएगी अथवा नहीं जो कि इन 21 दिनों में सीधे-सीधे सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले हैं, क्योंकि हमारे ज्यादातर किसान भाई इंटरनेट, सोशल मीडिया पर कहीं नहीं हैं, और समाचार पत्र आने वाले दिनों निकलेंगे और हम तक पहुंचेंगे अथवा नहीं, और यह कि ये समाचार पत्र भी कोरोना-वायरस की छुआछूतसे सुरक्षित होंगे अथवा नहीं, यह भी स्पष्ट नहीं है ,

अन्य बहुत सारी चीजों की तरह, कोरोना महामारी की भयावहता तथा इससे जुड़े खतरों से कोई भी पढ़ा-लिखा समझदार व्यक्ति इनकार नहीं कर सकता। लेकिन इससे सर्वविध समुचित बचाव के साथ ही देश के गांवों, किसानों के जीवन से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए।
जैसे कि माननीय प्रधानमंत्री जी की घोषणा में इस देश के शत-प्रतिशत जनसंख्या की भोजन की थाली में भोजन, तथा लगभग साठ प्रतिशत जनसंख्या को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार देने वाले जनसंख्या के रोजगार के मूलाधार कृषि तथा किसानों की व्यवस्था के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा गया है।

1-क्या इन इक्कीस दिनों में देश के गांवों के किसान तथा उनके परिजन अपने खुद के घर से लगी बाड़ी में तथा अपने खेतों में भी, अपनी फसलों की देखभाल करने भी ना जाए तथा खेतों में भी काम काज पूर्णतः बंद रखें?
2- क्या साल भर खून पसीना एक कर की गई कड़ी मेहनत करने की उपरांत खेतों में कटने को तैयार खड़ी फसल को काटने, खलिहान में सुरक्षित लाकर रखने के लिए भी किसान (कोरोनावायरस से बचाव की सभी जरूरी सावधानियां (सोशल डिस्टेंसिंग) रखते हुए भी) घर से बाहर ना निकलें ??

और इस बीच अगर बारिश,पानी,बीमारियों, जानवरों से उन फसलों का नुकसान होता है तो क्या देश की जनता कोरोना वायरस से मरने के बजाय आगे फिर भूख से तिल तिल कर न मरेगी?

3-एक कहावत है कि “दुनिया में और सब चीजें बेशक इंतजार कर सकती हैं सिवाय खेती के” तो जिन फसलों को लगाने की तैयारी किसानों ने कर रखी है, उन खेतों का तथा और बीज और पौधों का क्या होगा। किसानों को खाद बीज दवाई कैसे मिलेगी। इस बीच फसलों की सिंचाई की क्या व्यवस्था रहेगी?
क्या यह सब देश के लिए जरूरी नहीं है।
हमारा मानना है कि इसमें प्रधानमंत्री द्वारा कहा कहीं गई, पर्याप्त तथा पर्याप्त से भी अधिक “सोशल डिस्टेंसिंग” रखते हुए भी भली भांति यह समस्त कार्य संपन्न किए जा सकते हैं। हम यह नहीं कहते कि एक महीने पहले सरकार के द्वारा क्या किया जाना था, 15 दिन पहले क्या किया जाना था, यह हुआ या नहीं हुआ किंतु एक बात समझ से परे है, कि संपूर्ण देश में लाक-डाऊन करने के लिए नोटबंदी की तर्ज पर रात 8:00 बजे उद्बोधन करके रात 12:00 बजे से लागू करने के बजाय यदि यह कार्य जनता को विश्वास में लेकर, पर्याप्त हर स्तर पर पर्याप्त तैयारी करके समुचित तरीके से भी तो किया जा सकता था। क्योंकि इस तरह घोषणा करने लोगों ने सारे निर्देशों को ताक पर रखकर जल्दबाजी में सामानों की खरीदारी करने बाजार का रुख किया और पिछले 4 – 5 दिनों तक के जनता कर्फ्यू, सोशलडिस्टेंसिंग की पूरी मेहनत मिट्टी में मिल गई।

4- बैंकों से भारी ऋण लेकर जिन किसानों ने फूलों, मसालों, औषधि पौधों की पोली हाउस, नेट हाउस, नर्सरिया, तथा पौध गृह स्थापित किए हैं इन पौधों में रोज खाद, पानी, देखभाल किया जाना बेहद जरूरी होता है और पानी न दिए जाने पर बेशक इनकी पूरी फसलें चौपट होनी तय है। इनके लिए भी कोई सुरक्षित विकल्प क्यों नहीं सुझाया जा सकता है।
क्या इस अवधि में सुरक्षा, बचाव की ऐतिहात बरतने के साथ ही, खाद,बीज, की दवाई की आपूर्ति जारी नहीं रखी जा सकती। कम से कम किसान तथा किसानों के परिजनों को आपस में समुचित दूरी बनाते हुए खेतों में कार्य करने की अनुमति दी जा सकती है । इसी तरह पाली हाउस, और सभी नर्सरिओं के छोटे पौधे जो कि बिना पानी के अभाव में शीघ्र ही मर जाते हैं, की सिंचाई,और देखरेख की भी व्यवस्था सुनिश्चित की जा सकती है।

*कृषि से संबंधित इन सभी बिंदुओं के संदर्भ में सरकार के द्वारा क्तत्काल देशहित में स्पष्ट दिशा निर्देश दिए जाने चाहिए।*
5- बस्तर तथा ऐसे ही अन्य वन क्षेत्रों में रहने वाली जनजातीय समुदायों के महुआ, आम, इमली, तेंदूपत्ता, एकत्र करने का प्रमुख समय है। साल भर में यही कुछ दिनों का समय होता है, जब यह परिवार घरों से निकल करअपने साल भर तक परिवार को चलाने के लायक रोजगार अपने इन परंपरागत अन्नदाता जंगलों से प्राप्त कर पाते हैं। जिन गांव में बाहर से शहरों से कोई भी व्यक्ति नहीं आया है, कम से कम उनकी पहचान कर, उन *वनवासियों के लिए कोई उचित समाधान दिया जाना उचित होगा।*

6- राज्य सरकारें शहरों में रहने वाले दिहाड़ी मजदूरों, ठेला, खोमचे वालों को राशन तथा नगद राहत राशि आदि सहायता देने की बातें तो कर रही है किंतु गांव में रहने वाले अपंजीकृत कृषि मजदूर जो रोज कुआँ खोकर खोदकर पानी पीते हैं उनके रोजगार को लेकर क्या समाधान होगा, यह भी सोचना जरूरी है।

7- कुल मिलाकर ,इस समय की महती आवश्यकता है कि, सरकार कोरोना वायरस से बचाव हेतु वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सभी सुरक्षा तथा बचाव के निर्देशों का अधिकतम कड़ाई से पालन करवाते हुए, उपरोक्त बिंदुओं पर क्षेत्रीय परिस्थितियों के अनुसार ऐसे व्यावहारिक समाधान निकाले, जिससे कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे, और जनता को इसके बारे में भली-भांति जागरूक करके, उसे विश्वास में लेकर, यह बड़ी आसानी से क्या जा सकता है। क्योंकि हम सबका लक्ष्य है कि कोरोना महामारी से हमारे देश में और जनहानि न होने पाए, साथ ही देश को इस अवधि की बंदी से होनेवाली गंभीर दीर्घकालिक हानियों से भी बचाया जाय।

लेखक:राजाराम त्रिपाठी(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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