www.positiveindia.net.in
Horizontal Banner 1

दंगों की बिसात पर पुलिस और नेताओं का नंगा नाच

दंगों को रोकने के लिए अहम है पुलिस सुधार

Ad 1

Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
दिल्ली मे दंगे हुए और सबसे ज्यादा प्रश्न दिल्ली पुलिस की भूमिका के लिए खड़े हो रहे है । प्रश्न पूछने वाले यही नेताओ की जमात होती है । इतने भयानक दंगो मे पुलिस मूकदर्शक बनकर क्यो खड़ी थी । ये सवाल वो लोग पूछ रहे है जिन्होने अपने कार्यकाल मे पुलिस के हाथ बांधे हुए थे । यही कारण है राजधानी दिल्ली मे सिक्ख दंगो के समय भी पुलिस असहाय मुद्रा मे खड़ी थी ।

Gatiman Ad Inside News Ad

जब खुले आम काश्मीरी पंडितो का नरसंहार हुआ, बलात्कार हुआ, अपने ही देश मे शरणार्थी हो गये, तब न धर्मनिरपेक्षता खतरे मे आई ना ही किसी सेकुलर नेता ने हाय तौबा मचाई। तब तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद और पुलिस क्या कर रही थी?

Naryana Health Ad

तब किसी ने आवाज नही उठाई, जब सिक्खो का नरसंहार हो रहा था। तब पुलिस क्या कर रही थी? इन नेताओ का भीरूपन या कायरता का असर पुलिस के कामो पर भी पड़ता है । इन लोगो का तो यह हाल रहता है जब वाहवाही लेनी रहती है तो सामने आ जाते है और जवाबदेही के समय पुलिस को आगे खड़ा कर देते है । यही कारण है कि साधारण सा अदना आदमी भी पुलिस को जहां गाली दे देता है वही हाथ उठाने मे संकोच भी नही करता है ।

दिल्ली मे हुए दंगो की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए । इनके पीछे खड़े राजनीतिक दल और नेताओ के चेहरे बेनकाब होना चाहिए । जांच में कई तथाकथित सेक्यूलर नेताओ के चेहरे बेनकाब हो जाऐंगे । अभी एक वर्ग द्वारा अनुराग ठाकुर , प्रवेश वर्मा , कपिल मिश्रा के भड़काऊ भाषणों की जांच की मांग की जा रही है । यह स्वागत योग्य है । पर क्या इतने से इतना बड़ा दंगा हो गया । जांच की मांग करते हो तो इतना भी साहस होना चाहिए कि सभी की भूमिका की निष्पक्ष जांच के मांग की हिम्मत रखनी चाहिए ।

पहले मैने बीजेपी के नेताओ की जांच की बात की है । अब कांग्रेस के भूमिका की भी बात की जानी चाहिए । कांग्रेस का वह नेता जिसने कभी भी कोई अप्रिय स्थिति उत्पन्न होने दी; उससे यह पार्टी पल्ला झाड लेती है । पर परोक्ष रूप से और अपरोक्ष रूप से हर समय उनके साथ खड़ी नजर आती है । पाकिस्तान से संजीवनी लेकर आये मणिशंकर अय्यर के शाहीन बाग मे शाहीन तरीके से दिये गये भाषण को जांच के दायरे मे रखना चाहिए । इसके बाद शशि थरूर, जो बाद मे सीएए के समर्थन मे दिखे, उनके भी उदगार पर नजर डालने की आवश्यकता है । पूर्व विदेशमंत्री तथा पूर्व राष्ट्रपति के नाती सलमान खुर्शीद,जो एक मुश्किल से तीन साल की बच्ची के आजादी के स्लोगन पर तालिया पीटते नजर आए, इसकी भी जांच होनी चाहिये। उस समय पर्दे के पीछे के बयान को भी नेताओ सहित जांच के घेरे मे रखा जाना चाहिए । इनके सर्वोच्च नेता ने भी सीएए के खिलाफ सड़को पर आने की बात की, इसे भी जांच के दायरे में रखा जाना चाहिए ।

सेक्युलर नेता वारिस पठान , शरजील इमाम , एएमयू का छात्रसंघ अध्यक्ष , तीस्ता शीतलवाड, अनुराग कश्यप,स्वरा भास्कर जैसे अनेको नाम है, जिन्होने इस आंदोलन को भड़काने में अपनी आहूति दी है;इन सबको जांच के घेरे मे लेने की आवश्यकता है । आम आदमी पार्टी के कई नेता तथा कांग्रेस के उन नेताओ की जांच होनी चाहिए जो इस आंदोलन के पीछे सदृढता से खड़े थे ।

आम आदमी पर दिल्ली दंगे के समय जो वीडियो वायरल हुआ, जिसमे एक व्यक्ति खुले आम पिस्तौल लहराकर डंडा पकड़े हुए पुलिस को धमकाता है और पुलिस चुपचाप मूकदर्शक बनकर अपने कर्तव्य का निर्वाह करते रहती है; इसकी गहराई से जांच होनी चाहिए। हमारा राजनैतिक सिस्टम ऐसा है भले पुलिस शहीद हो जाये पर सामने वाले बंदे को खरोंच तक नही आनी चाहिए, अन्यथा भारत की धर्मनिरपेक्षता खतरे में पड़ जाएगी और यह तथाकथित सेकुलर नेता विधवा विलाप करना चालू कर देंगे।

अगर सियासतदानो मे हिम्मत है तो उन्हे पुलिस को स्वायत्तता प्रदान कर देनी चाहिये । पुलिस के किसी भी काम मे कोई हस्तक्षेप नही । देखो फिर आने वाले दिनो मे कानून व्यवस्था कैसे सुचारू रूप से चलती है। अगर यही परिस्थिति रहती तो पुलिस पहले ही दिन शाहीन बाग खाली करा लेती । यहां तो कानून व्यवस्था पूरी राजनैतिक लाभ हानि पर निर्भर करता है जिसके कारण फैसला ही नही हो पाता । और यही शाहीन बाग मे हुआ । देश के हर जगह राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण दलो के कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद रहते है। “सैयां भये कोतवाल तो डर काहे का” । इसलिए खुले आम अनैतिक काम करने का साहस हो जाता है । कुछ भी हो जाता है तुरंत फोन पहुंच जाता है ।

दिल्ली दंगों के मामले में भी दोषी व्यक्ति को पुलिस को सौंपने की जगह बेशर्मी से खुलकर टीवी मे वकालत करते दिखी पार्टियां! यही सुरक्षा कवच है जो अपराधियो को राजनीति मे आने के लिए लालायित करता है । इसलिए सभी दलो मे अपराधियों का राजनैतिक नेताओं के साथ चोली दामन का साथ है । पुलिस के स्वतंत्र होने से इनके फोन की कोई कीमत नही रह जायेगी । वही अपराध मे प्रत्यक्ष बचाने के राजनीतिक फैसले पर भी विराम लग जायेगा । पूर्ण जवाबदेही तय होने के कारण बगैर किसी लाभ हानि के फैसले लेने मे पुलिस पूरी स्वतंत्र रहेगी । और फिर शाहीन बाग जैसे आंदोलन शुरू करने के पहले दस बार सोचना पड़ेगा । अब समय आ गया है ऐसे हालातो से बचने के लिए पुलिस सुधारों को एक नई दिशा दी जाए।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)

Horizontal Banner 3
Leave A Reply

Your email address will not be published.