Positive India:Rajesh Jain Rahi:
संविधान की दुहाई, देते खुद तोड़कर,
ताना-बाना प्रेम वाला, कुछ तोड़ने लगे।
अधिकार चाहते हैं ,अधिकार लूट कर,
बिना बात ही शिगूफा, कुछ छोड़ने लगे।
नागरिकता का पाठ, नहीं जिन्हें ज्ञात ठीक,
ठीकरा वो ठीक राह, पे ही फोड़ने लगे।
गंगा बहती है मेरे देश में सभी के लिए
धरने की ओर धारा, कुछ मोड़ने लगे।
लेखक:कवि राजेश जैन राही, रायपुर