सुपेबेड़ा में किडनी फेलियर की वजह से हुई 64 मौतों की वजह ढूंढने में नाकाम मेडिकल टीम
डॉक्टरों के मुताबिक चिकित्सा विज्ञान के हिसाब से सुपेबेड़ा की बीमारी में नया कुछ नहीं!!
Positive India:Raipur:सुपेबेड़ा में किडनी फेलियर की वजह से हुई 64 मौतों की वजह ढूंढने में नाकाम रही है मेडिकल टीम। इस मैडिकल टीम के मुताबिक चिकित्सा विज्ञान के हिसाब से सुपेबेड़ा की बीमारी में नया कुछ नहीं है।
राज्य शासन के स्वास्थ्य विभाग ने आज यहां सुपेबेड़ा के अध्ययन दौरे से लौटे नई दिल्ली के किडनी रोग विशेषज्ञों, डीकेएस अस्पताल, एम्स रायपुर और निजी अस्पतालों के विशेषज्ञों से सुपेबेड़ा में किडनी रोगों की समस्या के बारे में मंथन किया। प्रख्यात किडनी रोग विशेषज्ञ डॉ. विजय खेर और डॉ. विवेकानंद झा ने कहा कि समस्या के सभी पहलुओं के व्यापक अध्ययन के बिना किसी निष्कर्ष पर पहुंचना कठिन है। सुपेबेड़ा की मिट्टी, जल, पर्यावरण, भूगर्भिक विशेषताओं, खान-पान की आदतों और लोगों के आनुवांशिक गुणधर्मों के सम्यक विश्लेषण के बाद ही किडनी रोगों के कारणों के बारे में कुछ नतीजा निकाला जा सकता है। उन्होंने कहा कि चिकित्सा विज्ञान के हिसाब से वहां की बीमारी में कुछ नया नहीं है।
सुपेबेड़ा में किडनी के मरीजों से 14 जनवरी को हुई चर्चा, स्वास्थ्य विभाग और वहां भ्रमण कर लौटे स्थानीय विशेषज्ञों से प्राप्त सभी तरह के तथ्यों को खंगालने के बाद विशेषज्ञों ने माना कि इस तरह की समस्या देश की अन्य जगहों पर भी हो सकती है। उन्होंने बताया कि आंध्रप्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में भी इस तरह की समस्या है जहां डॉ. विवेकानंद झा कुछ वर्षों से इसकी पड़ताल कर रहे हैं। उन्होंने छत्तीसगढ़ की नागरिक संस्थाओं और अधिकारियों को वहां के भ्रमण का सुझाव दिया। दोनों विशेषज्ञों ने कहा कि पानी कम पीने से किडनी पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। दर्द निवारक दवाओं के सेवन से भी किडनी क्षतिग्रस्त होती है। इस बारे में लोगों को जागरूक करने की बहुत जरूरत है। उन्होंने डॉक्टर के प्रिस्क्रिस्पशन के बिना दर्द निवारक दवाईयों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया।
स्वास्थ्य विभाग की सचिव निहारिका बारिक सिंह ने कार्यशाला में हुए विचार-विमर्श के बाद कहा कि आज हुई चर्चा के आधार पर हम कार्ययोजना बनाकर सुपेबेड़ा के लोगों को राहत पहुंचाएंगे। शासन के साथ ही सिविल सोसाइटी और निजी क्षेत्र के विशेषज्ञ भी वहां की समस्या से चिंतित है। उन्होंने ओड़िशा सरकार से बात कर आसपास के इलाकों में दवाईयों की बिक्री और इसके गैरजरूरी इस्तेमाल की निगरानी की बात कही। उन्होंने विशेषज्ञों से किडनी रोगों के इलाज में काम आने वाली जरूरी दवाईयों की सूची भी मांगी जिससे कि ये दवाईयां स्थानीय प्राथमिक एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में उपलब्ध कराई जा सके। स्वास्थ्य सचिव ने कहा कि किडनी रोगों के चलने वाले लंबे उपचार और देखभाल के लिए शासन प्रतिबद्ध है। सुपेबेड़ा में डॉक्टरों की कमी दूर करने में निजी चिकित्सकों की मदद मिल रही है। उन्होंने उम्मीद जताई कि आगे भी उनका सहयोग मिलता रहेगा।
मुख्यमंत्री की सलाह महत्वपूर्ण
कार्यशाला में डॉ. खरे एवं डॉ. झा ने 14 जनवरी को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से हुई मुलाकात के दौरान मिले सुझाव को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। मुख्यमंत्री बघेल ने सिविल सोसाइटी को जोड़कर अभियान को आगे बढ़ाने की बात कही है। उन्होंने इसी तरह की समस्या से जूझ रहे आंध्रप्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के दौरे पर अधिकारियों और नागरिक संस्थाओं को भेजने की भी बात कही है।
अनेक विशेषज्ञों ने रखी अपनी बात
कार्यशाला में संचालक चिकित्सा शिक्षा डॉ. एस.एल. आदिले, रामकृष्ण केयर अस्पताल के डॉ. प्रवास चौधरी और डॉ. संजीव काले, एम्स रायपुर के डॉ. विनय राठौर और डॉ. अभिरूचि गिरहोत्रा ने भी सुपेबेड़ा के अपने अनुभव साझा किए। भू-गर्भ शास्त्री डॉ. निनाद बोधनकर ने सुपेबेड़ा की भू-गर्भीय परिस्थितियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। कार्यशाला में डॉ. प्रवण चौधरी, डॉ. आर.के. साहू, डॉ. सुनील धर्मानी, डॉ. सुमित चौधरी डॉ. साईनाथ पत्तेवार, डॉ. शुभा दुबे, डॉ. निर्मल वर्मा और लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के प्रमुख अभियंता श्री टी.जी. कोसरिया भी शामिल हुए।