Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
अंडमान की सेलुलर जेल मे लगने वाली ईटों को वही बनाया गया था। जेल की इमारत में इस्तेमाल होने वाले लोहे को बर्मा से लाया गया था । उंची सेल्यूलर जेल मे सात विंग थे । जिन्हे सेंट्रल टावर से वाच किया जाता था । किसी भी कैदी को सेंट्रल टावर से गुजर कर ही इधर से उधर जाना पड़ता था । एक बैरक से दूसरे बैरक मे जाने के लिए गैप के बीच मे पटिया रखकर इधर से उधर जाया जाता था । बाद मे उसे हटा दिया जाता था । अंडमान सेल्युलर जेल का जेलर विंड बेरी था । काफी निर्मम किस्म का जेलर था । उसने जेल मे क्रांतिकारियों को असहनीय यातनाये दी । ईश्वर की मार देखो अंतिम समय मे जेलर बैरी को अपने देश की मिट्टी नसीब नही हुई। वो अपने देश पहुंचने के पहले ही, कलकत्ता मे ही उसका निधन हो गया । पर यह शाश्वत सत्य था कि जेल का मकसद ही अंग्रेजो का यह था कि ये क्रांतिकारी देश से, घर से कट जाये और यहाँ के जुल्म के चलते शहीद हो जाए; जिससे आजादी के आंदोलन को दबाया जा सके ।
मैं वीर सावरकर के उपर लिखने के पहले उन क्रांतिकारियों का उल्लेख करूंगा जिनकी मूर्तिया सेल्यूलर जेल के सामने के पार्क मे लगी हुई है । पर इसके पहले भी इन आजादी के दीवानों को अंग्रेज कैसी सजा देते थे; उससे भी सबको रूबरू होना चाहिए ।
सेल्यूलर जेल के बीच मे ही एक सौ साल पुराना पीपल का पेड़ है, जो इन सबका साक्षी है । उसी के थोड़े से ही अंतराल मे वो कक्ष भी है जहां क्रांतिकारियों को सजा दी जाती थी । इन्हे बैलो के समान कोल्हू में बैल के स्थान पर जोता जाता था । इसमे प्रतिदिन अगर खोपरा तैल है तो 13 पौंड और सरसो तैल है तो 10 पौंड निकालना होता था । नही निकलने पर हाथ पैरो को बीम मे बांधकर मात्र कच्छा ही पहनाकर कोडे से एक ही जगह मारते थे, जिससे वो बैठ न सके। बैठने से घाव भरता नही था; वहीं शौच मे भी काफी तकलीफ होती थी । कुल मिलाकर उसको ऐसा प्रताड़ित किया जाता था कि माफी माँग कर अपने को इस आंदोलन से हटकर उनका वफादार बन जाए या फिर मानसिक अवसाद का शिकार हो जाए । अंत मे यह निश्चित था कि इतनी शारीरिक तकलीफ के बाद क्रांतिकारी शहीद ही हो जाते थे ।
सेल्यूलर जेल को बनाकर अंग्रेज अपने मकसद मे कामयाब भी हो गए थे । पर इस देश के मिट्टी की तारीफ करनी होगी; इस उर्वरा धरती ने इतने क्रांतिवीर पैदा कर दिये कि सेल्यूलर जेल छोटा पड़ने लगा । अभी इतना ही । आगे क्रमशः
लेखक: डॉ.चंद्रकांत वाघ- अभनपुर