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तथाकथित धर्मनिरपेक्षता भारत की एकता के लिए खतरा

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
बुरा बुरा होता है, फिर इसमे धर्म कहाँ से आ गया है ? पिछले दिनो औरंगजेब को लेकर बहुत ज्यादा बहस हुई । एक तबका तो औरंगजेब के किये गये पुण्य का काम को खोजकर अपने तरफ से महान बनाने मे कोई कसर नही छोड़ना चाहता था । कुल मिलाकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि औरंगजेब के बहाने धर्म को निशाने पर लेने की कोशिश हो रही है। ऐसा उस धर्मनिरपेक्षता के झंडाबरदारो को लग रहा था, पर ऐसा है नहीं ।

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जब रावण की बात की जाती है तो क्या वो हिंदू धर्म की बात हो गई ? क्या रावण के कारनामे से हिन्दू धर्म बदनाम हो गया ? ऐसी मानसिकता लेकर क्यो चला जा रहा है ? अगर औरंगजेब ने अपने पिता को बंदी बनाया,अपने भाई को मारा, ये तो इतिहास मे ही दर्ज है । वही उस समय गुरुतेगबहादुर की भी शहादत की बात है । क्या शंभाजी महाराज को बुरी तरह नही मरवाया ? आज भी चित्रकूट मे शिवजी का मंदिर है, जिसको उस समय औरंगजेब ने खंडित करने का प्रयास किया था, पर वो सफल नही हो पाया। आज भी मंदिर आकर्षण का केंद्र है ।

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आज भी रावण को दशहरे के दिन मारकर बुराई पर अच्छाई की जीत का त्यौहार माना जाता है । वहीं विभीषण के लिए “घर का भेदी लंका ढाऐ” यह उक्ति भी बन गई है । ऐसे समय कोई भी हिंदू इनके लिए आहत नही होता, फिर ये धमॆनिरपेक्षतावादी क्यो आहत होते है?

अगर औरंगजेब के नाम से इस देश को परेशानी होती, तो अभी काश्मीर मे देश के लिए शहीद हुए औरंगजेब के लिए पूरा देश नतमस्तक क्यों हो गया? दुर्भाग्य यह है कि मुगल साम्राज्य को अच्छा बनाने के लिए, उनके किये हुए गलत काम को भी धर्मनिरपेक्षता के नाम से सही बताने की कोशिश की जा रही है। इतिहास सामने आने पर भी तथाकथित धर्मनिरपेक्षवादी तत्वों की आंखें नहीं खुल रही है । इनकी खीझ ज्यादा है । अगर मुगल बादशाहो ने कम से कम अपने ही समुदाय के लिए कुछ किया होता तो मुसलमानो मे इतनी गरीबी नही रहती। वही शिक्षा के मामले मे भी इतने पीछे नही रहते। उन्होंने सिर्फ अपने लिए राज किया और ज्यादा हुआ तो अपने याद के लिए स्मारक बनाया ।

अंग्रेजो ने भी राज किया, अत्याचार भी किया, पर उन्होंने रोड, डैम, गार्डन, रेल ऐसे अनेक आधुनिक सुविधा से अवगत भी कराया । भारत को कम से कम आधुनिक भारत बनाने की नींव तो रखी । दुर्भाग्य यह है मुगल शासको के किसी भी काम को इतिहास मे जगह नही मिली है । अगर दारा शिकोह सभी धर्म का आदर करता था, ज्ञानी था तो कहां कोई इंकार कर रहा है। पता नही उसकी विद्वता इन सब कथित धर्मनिरपेक्षवादियों को क्यों नहीं अच्छी लगती और देखते देखते क्रूर और अत्याचारी औरंगजेब इनका आदर्श बन जाता है।

हम आज भी कंस और दुर्योधन को अत्याचारी मानते है,उनको आदर्श बनाने के लिए लड़ नही लेते। आज क्या हो रहा है,शहीद अशफाक उल्ला खान, शहीद अब्दुल हमीद, भारत रत्न पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम इनके आदर्श नही बन पाते । परन्तु जब अफजल गुरु के लिए ये तथाकथित सेकुलरिस्ट न्याय की बात करते है तो प्रश्न तो उठता है। रोहिंगया मुसलमान के लिए सड़को पर और काश्मीरी पंडितो के लिए चुप्पी इनकी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की सोच को उजागर कर देती है । हर धर्म मे इस तरह के लोगों का मिलना कोई बड़ी बात नही है । पर हम अपने को किससे जुड़े रहे, यह बड़ी बात है ।

जब ये तथाकथित सेकुलरिस्ट सफल नही होते तो एक डर की बात करने लगते है । ऐसा कर ये मात्र अंतरराष्ट्रीय समुदाय मे,अपने देश की प्रतिष्ठा को गिराते है । इस देश मे मुगलो ने छै सौ साल राज किया,तब किसी हिन्दू ने नही कहा कि यहाँ रहने मे डर लगता है । अगर इनका राज रहा तो पूरी धर्मनिरपेक्षता रहती है, लोग बगैर डर के रहते है; भले ही उस समय पंडितो का नरसंहार हुआ हो या फिर सिक्खो का, पर उस समय गंगाजमुनी तहजीब उफान पर थी ? आगे और कभी, पर यह तय है किसी के भी साथ धर्म को जोड़ना और उसके काय॔ को उसके साथ आंकलन करना राजनीति के लिए तो ठीक हो सकता है, पर देश के साथ मात्र छलावा है

कुछ दिनो पहले जमाते अलहिंद ने काश्मीर मुद्दे पर सरकार का खुलकर समर्थन कर देश का साथ दिया । दुर्भाग्य से इन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगो ने उनके ही मंशा पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया । मुझे गर्व है अपने देश पर, इतिहास मे भी और आज भी एक बहुत बड़ा तबका है जो देशहित को सर्वोपरि रखकर ही अपनी बात रखता है । अब तो हालात यह है पीओके और पाकिस्तान के भी कई नागरिक यही सोचने लगे है जो उनके टी वी बहस मे दिखता है । चलो कभी इस विषय पर और भी लिखूंगा ।

लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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