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पार्षद से राज्यपाल तक का सफ़र : रमेश बैस.

रमेश बैस के जन्मदिन पर विशेष .

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पॉजिटिव इंडिया: रायपुर: 2 अगस्त.

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फ़ोन की घंटी बजती है . दो महान शख़्सियत एक दूसरे से रूबरू होते है ।” क्या आप छत्तीसगढ़ से बाहर जाएँगे ??” सवाल भारत के प्रधानमंत्री का था ।
“पार्टी जो निर्देश देगी उसका पालन करूँगा । मेरे लिए पार्टी ही सबकुछ है ”
सौम्य और सरल जवाब रमेश बैस जी द्वारा दिया गया।
उन्हें तुरंत दिल्ली बुला लिया गया । दिल्ली पहुँचने पर विचार विमर्श कर वे वापसी की तारीख़ का इंतज़ार करने लगे । पर उनसे पहले एक ख़बर जो छत्तीसगढ़ पहुँची । रमेश बैस जी को त्रिपुरा का राज्यपाल बनाया गया है । यक़ीन मनिए ये ख़बर छत्तीसगढ़ के लिए सबसे बड़ी ख़ुशख़बरी से अधिक एतिहासिक बनी । छत्तीसगढ़ के इतिहास के पन्नो के अमर होने वाली ख़बर का स्वागत न केवल जनता ने बल्कि पक्ष-विपक्ष के नेताओ ने भी किया। मेरी सलाह है जो छत्तीसगढ़ व त्रिपुरा के प्रतियोगिता परीक्षा के अभियार्थी है वो बैस जी के विषय पर रट्टा मार के रख ले इस बार पीएससी में उनसे जुड़ा प्रश्न ज़रूर आएगा ।
बचपन में खेल-कूद , स्कूल , पढ़ाई , घूमना दोस्ती यारी के बाद जब हम युवा अवस्था में होते है तब एक शब्द से पाला पड़ता है वह है “राजनीति” ।
कुछ लोग इसे कीचड़ समझ कर इसमें आते ही नहीं और कुछ इस कीचड़ में उतरकर कमल खिला देते है । युवा अवस्था में मैंने भी इस शब्द को सुना और यक़ीन मानिए मेरी राजनीतिक पृष्ठभूमि जो भी रही हो पर राजनीतिक गालियाँरे में किसी नेता को जाना तो वे है रमेश बैस जी । अब कारण मत पूछना । इस बात का ज़िक्र कई बार मित्रों से भी कर चुका हूँ।
चलिए थोड़ा उनके राजनीतिक जीवन की सैर कर लेते है । एक समय था जब राजनीति का मतलब कांग्रेस था और कांग्रेस का मतलब राजनीति । प्रधानमंत्री ,राष्ट्रपति ,विधायक ,सांसद ,मंत्री , राज्य मंत्री ,अध्यक्ष सभी जगह कांग्रेस का अधिप्त्य था ।
जब गाँव से शहर तक हर कोई कांग्रेस का हिस्सा बनना चाहता था तब छत्तीसगढ़ के एक नौजवान ने धारा के विपरीत बहने की ठानी । ये वह समय था लोग कांग्रेस के अलावा दूसरे झंडे को जानते ही न थे । मगर बैस जी ने उस दौर में दूसरे पार्टी के झंडे को थामा और दृढ़निश्चय किया कि वे इस झंडे को अपने क्षेत्र में न केवल थामेंगे अपितु इसका वर्चस्व भी फैला देंगे । बैस जी अपने युवा अवस्था में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी के व्यक्तित्व और व्यवहार से बहुत प्रभावित थे । यही कारण था कि उनसे प्रेरित होकर उन्होंने अपना राजनीतिक सफ़र का आग़ाज़ किया ।
किसी सलामी बल्लेबाज़ की तरह उन्होंने भी अपने राजनीतिक सफ़र की शुरूवात शानदार तरीक़े से ही की। सर्वप्रथम वे रायपुर के सबसे पुराने और राजनीतिक नेताओ की खान कहलाने वाले वार्ड ब्रामहण पारा से पार्षद चुने गए । उसके उपरांत वे मंदिर हसौद से विधायक निर्वाचित हुए ।उसके बाद बैस जी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा । लोगों में बैस जी की छवि नेता कम बेटा के रूप में अधिक होने लगी । जनता का अथक प्यार , आशीर्वाद और अपनी कार्यशैली से वे रायपुर के लगातार 7 बार अजेय और अजातशत्रु , बेदाग़ सांसद रहे ।
2019 लोकसभा चुनाव में अचानक बैस जी के टिकट कटने से बैस खेमा में काफ़ी नाराज़गी का महोल बन गया । अख़बार और न्यूज़ चैनलों ने भी ज़ोरदार ख़बर के लिए इसे पार्टी नेताओ की गुटबाज़ी का शिकार जैसे शीर्षक वाले ख़बर चलाए । ऐसे विपरीत समय में बैस जी ने अपने धैर्य और पार्टी के प्रति अपनी ईमानदारी का परिचय दिया और कार्यकर्ताओं को समझाया और चुनाव के लिए तैयार किया। उन्होंने कार्यकर्ताओं से अपील की कि कार्यकर्ता लोकसभा में उसी जोश उत्साह के साथ मेहनत करे जितना आप मेरे लिए करते है । और ख़ुद भी निसवार्थ तैयारी में जूट गए । नतीजन रायपुर में लोकसभा प्रत्याशी की एतिहासिक जीत दर्ज हुई । बैस जी ने न सिर्फ़ अपने सल्तनत को बचाया बल्कि दिल्ली दरबार में उनके प्रति संदेश भी सकारात्मक रूप से पहुँचा ।
अब बारी पार्टी की थी कि वह अपने कार्यकर्ताओं के भावनाओं का सम्मान किस प्रकार करेगी । शायद ये कहने की जरूरत नहीं कि बैस जी को अपनी वफ़ादारी और धैर्य का इनाम किस रूप में मिला । बैस जी की गिनती हमेशा बेदाग़ छवि , मेहनतकश और शालीन स्वभाव वाले नेताओ में होती है । रमेश बैस जी छत्तीसगढ़ के प्रथम व्यक्ति है जिन्हें इतना बड़ा दायित्व सौंपा गया है । आज छत्तीसगढ़ में राजनीतिक पटल पर बैस परिवार का अपना अलग ही मुक़ाम व वर्चस्व है । और कहना ग़लत नही होगा कि बैस परिवार छत्तीसगढ़ की राजनीति को प्रभावित करते थे, करते है , और करते रहेंगे ।

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महामहिम रमेश बैस जी को जन्मदिन पर मेरी तरफ़ से सप्रेम भेंट।
गजेन्द्र साहू.

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