” चक्रव्यूह”
ना समझना मुझको कमज़ोर
अबला नारी,
मैं शक्तिपुंज दुर्गा
जो करे दुर्व्यसन की दुर्गति,
मैं संहारकारिणी कालिका
जो दुष्टों का संहार करे,
मेरे दामन को छूने की
जुर्रत ना करना,
मत समझना मुझे
असहाय बालक अभिमन्यु,
जिसे “चक्रव्यूह” रच कर
मारा अपनों ही ने,
मैं भारतमाता
करोडो़ं बच्चों की
गौरवशाली माँ
जिसके कोख से
जन्म लिया वीर सपूतों ने,
जिसके दामन को भर दिया
दुश्मनों के नापाक ख़ून से,
मुझे किसी चक्रव्यूह में
फाँसने की गलती की
धृष्टता ना करना कभी,
वरना मारे जाओगे,
अपने बनाये चक्रव्यूह में
फँसकर खुद ही
नेस्तनाबूद हो जाओगे।।
संकलित:श्रीमती नीलिमा मिश्रा,रायपुर।