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रमेश विधुरी के संसद में बयान से विवाद फैल जाने का कारण क्या है?

- विशाल जा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
रमेश विधुरी के संसद में बयान से विवाद फैल जाने का कारण क्या है? तमाम राजनीतिक मंचों से खुली सभाओं में विवादित बयान दिए जाते रहे हैं। देश और धर्म के खिलाफ बयान से लेकर हिंदुओं के खिलाफ बयान तक। लेकिन भाजपा के नेताओं में ऐसा क्या है कि उनके द्वारा दिया गया कोई भी बयान डोमेस्टिक सीमा तोड़कर अंतरराष्ट्रीय मुद्दा भी बन जाता है। चाहे बयान टीवी चैनल पर दिए गए हों अथवा संसद के भीतर।

इसका जवाब बहुत सीधा है। भाजपा शीर्ष नेतृत्व में शामिल कैबिनेट मिनिस्टर का बयान भी बड़े-बड़े देशों के प्रधानमंत्री के बयान के बराबर दर्जे का होता है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो के बयान का काउंटर भारत सरकार ने अपने कैबिनेट मंत्री से दिलवाया। ना कि स्वयं पीएम मोदी। इसलिए भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने हर स्तर पर अपने नेताओं को मर्यादित आचरण के लिए सख्त कर दिया है। कहां हैं अब वे नेता- साक्षी महाराज, निरंजन ज्योति, साध्वी प्राची, संगीत सोम, विनय कटियार; गिरिराज सिंह तो है लेकिन उनके बयान कहां है?

दरअसल भाजपा ने अपने फायर ब्रांड एक-एक नेता की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीन ली। नूपुर शर्मा अघोषित रूप से बंदी गृह झेल रही हैं। यदि भाजपा के ये सभी नेता अपनी अपनी बेबाकी कायम रखते, तो आज संसद में रमेश विधूड़ी के बयान पर इतना बवाल ना होता। क्योंकि तब वह बयान एक सामान्य बयान होता। भाजपा नेताओं के तरफ से हर दिन दिए जाने वाले ऐसे बयानों में से एक होता। फिर इतना विवाद ना होता। ठीक वैसे ही जैसे हिंदुओं के विरोध में भाजपा और इसके सहयोगी दलों को छोड़कर, तमाम राजनीतिक दल दिन रात आपत्तिजनक बयान देते रहते हैं, और वह बयान एक सामान्य सा बयान बन जाता है।

किसी भी देश में राजनीतिक संवाद का स्तर कैसा है, मुख्यतः तीन स्थानों पर निर्भर करता है। पहले संसद में, दूसरा मीडिया प्रेस कॉन्फ्रेंस में और तीसरा राजनीतिक सभाओं में। संसद में एक सांसद दूसरे सांसद को जूते चप्पल से पीटते हैं, अथवा दो समूह आपस में टकराते हैं, ऐसा विदेशी पार्लियामेंट से तस्वीर आती रहती हैं। ऐसी सबसे अंतिम तस्वीर ऑस्ट्रेलिया की पार्लियामेंट से है। भारत के संसद में आज प्ले कार्ड भी चला जाए तो बड़ी खबर बन जाती है। इसका मतलब आज भारतीय संसद के आचरण का स्तर ऊंचा है। लेकिन निशिकांत दुबे का बयान याद कीजिए, कि 2013 में सोनिया गांधी सपा सांसद का कॉलर पकड़ने चली गई थीं।

मीडिया प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकार जब सवाल पूछता है, अमेरिका की राजनीति में डोनाल्ड ट्रंप सामने से बोलते हैं ‘यू फेक मीडिया’। भारत की मीडिया में मोदी ने मीडिया के नाम पर तमाम दरबारी पत्रकारों को 14 वर्ष तक झेला। लेकिन कभी पलट कर कोई आरोप नहीं लगाया। जबकि करण थापर, बरखा दत्त, राजदीप सरदेसाई, पुण्य प्रसून बाजपेई जैसे पत्रकार पत्रकारों में गिद्ध हुआ करते थे। मोदी इंटरव्यू क्विट कर देते थे, लेकिन कभी पलट कर जवाब नहीं देते थे। आज तो मोदी प्रधानमंत्री हैं, लेकिन इसके बावजूद वे मीडिया गैदरिंग करना ही छोड़ दिए हैं। ताकि मीडिया का साख बचा रहे। लेकिन कॉन्फ्रेंस में यदि राहुल गांधी से कोई पत्रकार तीखा सवाल पूछ दे, वे बिना देर किए पलट कर उसे भाजपा का एजेंट बता देते हैं। अब तो पूरे INDI गठबंधन ने तमाम पत्रकारों की एक लिस्ट निकालकर उसपर प्रतिबंध चढ़ा दिया है।

कुल मिलाकर हर मंच से हर स्तर पर राजनीति में शिष्टाचार बनाए रखने का भाजपा का प्रयास एकतरफा रहा है। भाजपा जब विपक्ष में थी, तब भी सत्ता पक्ष से इतना विश्वास जीत कर रखती थी कि उनके नेता विदेश में भारत सरकार के प्रतिनिधि बनाकर भेज दिए जाते थे। संसद से लेकर सड़क तक, बाजपेई से लेकर मोदी तक, राजनीति और लोकतंत्र में संवाद का ऊंचा स्तर केवल और केवल भाजपा के कारण ही कायम है। यदि भाजपा अभिव्यक्ति के स्तर पर स्वयं को स्वतंत्र कर ले, तो एक महीना काफी है, संसद क्या देश की हर गली-नुक्कड़ में संवाद का स्तर खत्म हो जाएगा। रमेश बिधूड़ी जी पर भी भाजपा ने बिना देर लगाए तुरंत एक्शन लिया। यही भाजपा के राजनीति का मूल्य है। हम शुक्रगुजार हैं।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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