www.positiveindia.net.in
Horizontal Banner 1

बिहार में आजकल धड़ाधड़ पुल क्यों गिर रहे हैं?

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

Ad 1

Positive India: Sarvesh Kumar Tiwari:
हमारे बिहार में आजकल धड़ाधड़ पुल गिर रहे हैं। यूट्यूब वाले पत्रकार एक पुल के गिरने पर वीडियो बनाते हैं तबतक दूसरा गिर जाता है। वे दूसरे तक पहुँचते हैं तबतक तीसरा गिर जाता है। लगता है पुल और युट्यूबर्स में दौड़ लगी है, कि कौन आगे है।

Gatiman Ad Inside News Ad

पुल गिरने की खबर हम इतनी बार सुन चुके हैं कि अब कुछ भी गिरता है तो लगता है कि कोई पुल ही गिरा है। हालांकि गिरने के लिए तो एयरपोर्ट की छत भी गिर रही है, सूट बूट वाले बाबा के चरणों में उनके भक्त गिर रहे हैं, फेसबुक पर देशवादियों की रीच गिर रही है, जेल में केजरीलाल जी के आंसू गिर रहे हैं, पर इन सब के बावजूद चर्चा केवल बिहार के पुल पा रहे हैं। मैं इसे बिहार का सौभाग्य मानता हूं।

Naryana Health Ad

एक आम भारतीय होने के नाते मैं जानता हूँ कि कोई पुल एक झटके में नहीं गिरता। गिरने की प्रक्रिया बहुत पहले से चल रही होती है। सबसे पहले नेता गिरते हैं, फिर अधिकारी गिरते हैं, उसके बाद इंजीनियर गिरता है। इन तीनों के गिरने से फिसलन हो जाती है सो ठेकेदार भी गिर जाता है। बात यहीं नहीं रुकती, इस फिसलन को देख कर आम जनता भी खुद को रोक नहीं पाती, देखादेखी वह भी गिरने लगती है। आपने यदि ठेकेदार के स्टॉक से गिट्टी, बालू, मसाला चुराती जनता को नहीं देखा तो शर्म कीजिये, धिक्कार है आपके भारतीय होने पर… हाँ तो जब इतने लोग गिर जाते हैं तो पुल को भी अपने खड़े होने पर शर्म आने लगती है। तो अपने निर्माताओं का साथ देने के लिए वह भी गिर जाता है। बात खत्म…

सच कहूँ तो हमारे देश में गिरना कभी लज्जा का विषय नहीं रहा। व्यक्ति जितना गिरता है, उसकी प्रतिष्ठा उतनी ही बढ़ती जाती है। खुसरो कह गए कि जो प्रेम के दरिया में डूबता है वही पार जाता है। ठीक वैसे ही, हमारे देश में जो गिरता है वही ऊपर जाता है। वैसे प्रेम में भी आदमी एक तरह से गिरता ही है। खुसरो कितना गिरे थे, यह हमें नहीं पता।

आप फेसबुक इंस्टा पर ही देख लीजिये, जो जितना ही गिरता/गिरती है, उसका रील उतना ही वायरल होता है। सिनेमा की कोई अभिनेत्री जितना गिरती है, उतना ही आगे बढ़ती जाती है। यहाँ तक कि एक लेखक भी जबतक गिरता… छोड़िये!

मैं कल एक मित्र से बातचीत कर रहा था। मित्र मुझे पुल गिरने के लाभ बता रहे थे। उन्होंने मुझे अर्थशास्त्र समझाते हुए बताया कि जब पुल गिरेगा, तभी न दुबारा बनेगा। दुबारा बनेगा तो मजदूरों को काम मिलेगा। सीमेंट, बालू, सरिया के रोजगारियों का धंधा चलेगा। नेता, अधिकारी कमीशन खाएंगे तो पैसा मार्किट में ही न देंगे! इस तरह पैसा घूम फिर कर जनता तक ही जायेगा, सो पुलों का गिरना जनता के लिए लाभदायक है। मित्र जिस कॉन्फिडेंस से मुझे समझा रहे थे उससे स्पष्ट हो गया कि वे भी कम गिरे हुए नहीं हैं।

हमारे देश में हर व्यक्ति अब गिरना चाहता है। वह केवल मौका तलाश रहा है। कब मौका मिले कि वह गिरे… पुल अकेले नहीं हैं, गिरने की यात्रा में सारा देश उनके साथ चल रहा है।

एक बात और कहूँ? यह तो नदियों के दोनों तटों को जोड़ने वाले पुल हैं दोस्त! हमारे यहाँ तो आदमी को आदमी से जोड़ने वाले पुल कबके ढह गए हैं। हम जब उसपर दुखी नहीं हुए तो इसपर क्या ही होंगे। है न?

साभार:सर्वेश तिवारी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।

Horizontal Banner 3
Leave A Reply

Your email address will not be published.