आप कैसे वाले मामा हैं, कंस मामा, या शकुनी मामा
-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-
Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
कल भांजे को लेकर बात छिड़ी तो एक मित्र ने परिहास करते हुए पूछा- “आप कैसे वाले मामा हैं? कंस मामा, या शकुनी मामा?”
मैंने उत्तर देने से पहले सोचा, “ये दोनों ही नकारात्मक चरित्र हैं। कंस अपने भांजे का अहित करना चाहता था, और शकुनी जीवन भर भांजे का अहित करता रहा। फिर इनमें से कोई आदर्श कैसे हो सकता है?” हालांकि सच यह भी है कि लोग बातों में इन्ही दोनों का उदाहरण देते हैं, मजाक में ही सही।
मैंने फिर सोचा, पौराणिक इतिहास में और कौन हैं जिन्हें अच्छा मामा कहा जा सकता है? फिर कृष्ण याद आये। लेकिन अभिमन्यु का गौरवपूर्ण किंतु लघु जीवन एक सामान्य गृहस्थ को प्रिय तो नहीं ही होगा…
ऐसी स्थिति में शल्य याद आते हैं। मद्र नरेश शल्य! जो नकुल और सहदेव के मामा थे। महाभारत युद्ध के पहले दुर्योधन ने उनको छलपूर्वक अपनी ओर कर लिया था। वचन से बंधे मद्र नरेश युद्ध तो कौरव पक्ष से करते थे, पर उनका हृदय अपने भांजों के लिए ही शुभ मनाया करता था।
मुझे महाभारत का वह दृश्य सदैव रोमांचित करता है, जब अपने अंतिम युद्ध में शल्य सहदेव से युद्ध ना करने का निवेदन करते हैं और युधिष्ठिर से युद्ध की याचना करते हैं। सहदेव के पूछने पर वे कहते हैं- मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे हाथों मृत्यु पा कर तुम पर मामा के वध का पाप चढाऊँ, मुझे युधिष्ठिर के हाथों मरना है। स्वर्ग जा कर क्या कहूंगा बहन से? यह कि मैं अपने ही भांजों से युद्ध कर रहा था? नहीं! मुझे युधिष्ठिर से ही युद्ध करना है।” यह बड़ा ही प्यारा और आदर्श भाव है।
वस्तुतः शल्य अपना अंतिम युद्ध मरने के लिए ही लड़ रहे थे। उन्होंने पूरे युद्धकाल में अपने भांजों को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया, बल्कि कर्ण का सारथी बन कर उसे हतोत्साहित करने में ही लगे रहे। विपरीत परिस्थिति में भी अपने भांजों के हित की चिंता करते शल्य सर्वश्रेष्ठ मामा सिद्ध होते हैं।
कई बार हम सब सम्बन्धों के गलत उदाहरण ही देते रहते हैं। जैसे मित्रता के लिए कर्ण और दुर्योधन का उदाहरण! कर्ण और दुर्योधन के मध्य मित्रता का नहीं, दासत्व का रिश्ता था। दुर्योधन के एक एहसान तले दबा कर्ण जीवन भर उसके कुकर्मों का साथी बना रहा। यह मित्रता तो नहीं… मित्रता का श्रेष्ठ उदाहरण कृष्ण और अर्जुन का है। अर्जुन के विवाह में कृष्ण आगे रहे, कृष्ण के विवाह में अर्जुन। अर्जुन के युद्धों को कृष्ण लड़ते रहे, कॄष्ण के युद्धों को अर्जुन… मित्रता यही है न?
किसी भी क्षेत्र के लिए आदर्श चुनने में सर्वाधिक सतर्कता बरते जाने की जरूरत होती है। आजकल हमलोग इसी कार्य में फेल होते हैं।
साभार:सर्वेश तिवारी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।